Benefits and Side Effects of Saptaparni
Benefits and Side Effects of Saptaparni- यह भारत के समस्त शुष्क पर्णपाती एवं सदाहरित वनों, पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिमालय में एवं असम में प्राप्त होता है तथा इसे सड़कों के किनारे या बगीचों में शृंगारिक पौधे के रूप में लगाया जाता है।
चरकसंहिता में कुष्ठ, विसर्प तथा मूत्रकृच्छ्र की चिकित्सा में तथा सुश्रुत-संहिता में व्रण, कुष्ठ, प्रमेह, मधुमेह, जीर्ण ज्वर तथा अपस्मार आदि व्याधियों की चिकित्सा के घटक द्रव्यों के रूप में सप्तपर्ण का उल्लेख मिलता है।
जो भारत में आसानी से कई जगहों पर पाया जाता है। सप्तपर्णी कई स्वास्थ्य समस्याओं में काम आता है। आयुर्वेद में इसे विषेश महत्तव दिया गया है। सप्तपर्णी की छाल और इसके फूल भी कई समस्याओं का इलाज हैं।
पत्तियाँ चक्राकार समूह में सात-सात के क्रम में लगी होती है, और इसी कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है. इसके सुंदर फूलों और उनकी मादक गंध की वजह से इसे उद्यानों में भी लगाया जाता है।
इसकी काण्डत्वक् पाचक, मृदु विरेचक, कृमिघ्न, ज्वरघ्न, शोधक, स्तन्यस्राव वर्धक, क्षुधावर्धक तथा बलकारक होती है। तथा इसके आक्षीर तथा पत्र व्रणरोधी होते हैं।
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सप्तपर्णी के फायदे (Benefits of Saptaparni):-
सप्तपर्णी आपके चर्म रोगों को भी ठीक करने में मददगार मानी जाती है। इसका इस्तेमाल दाद, खाज और खुजली में बहुत फायदेमंद होता है। सप्तपर्णी की छाल का लेप और रस दोनों ही चर्म रोग ठीक करते हैं। यह त्वचा पर कोलेजन बढ़ाकर रिंकल्स आने से भी रोकती है।
पेड़ से प्राप्त दूधनुमा द्रव को तेल के साथ मिलाकर कान में ड़ालने से कान दर्द में आराम मिल जाता है. रात सोने से पहले 2 बूंद द्रव की कान में ड़ाल दी जाए तो कान दर्द में राहत मिलती है।
पुरानी खाँसी में 100 ग्राम बहेड़़ा के फलों के छिलके लें, उन्हें धीमी आँच में तवे पर भून लीजिए और इसके बाद पीस कर चूर्ण बना लीजिए। इस चूर्ण का एक चम्मच शहद के साथ दिन में तीन से चार सेवन बहुत लाभकारी है।
अल्स्टोनिया स्कोलैरिस, यानी सप्तपर्णी का स्वाद भले ही कड़वा और कसैला होता है, लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में त्वचा की बीमारियों से लेकर दस्त सांप के काटने के उपचार के लिए भी सप्तपर्णी को प्रयोग में लाया जाता है।
सप्तपर्णी का प्रयोग किसी भी तरह के दर्द से आराम दिलाता है। यह एक एंटी इन्फ्लेमेटरी पौधा होता है। इसकी छाल का काढ़ा पीने से बदन दर्द में आराम मिलता है।
सप्तपर्णी की हीलिंग प्रॉपर्टीज किसी भी तरह के घाव को भर देती है। ऐसा शोध में पाया गया है की सप्तपर्णी घाव भरने में काफी कारगर होती है। इसके लिए आप सप्तपर्णी की छाल का लेप बनाकर घाव पर लगाएं।