Gangaur Festival – जानें गणगौर के बारें में

Gangaur-Festival

Gangaur Festival

Gangaur Festival- त्यौहारों के देश भारत देश में विभिन्न संस्कृतियों का मेल है। भिन्न-भिन्न राज्य और उनकी संस्कृति. हर प्रदेश की संस्कृति झलकती है उसकी, वेश-भूषा से वहा के रित-रिवाजों से और वहां के पर्व और त्यौहारों से। हर प्रदेश की अपनी, एक खासियत होती है जिनमे, त्यौहार की अहम भूमिका होती है।

भारत का एक राज्य राजस्थान, जिसे मारवाड़ीयों की नगरी कहा जाता है। गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बेहद ही उत्साह से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पारंपरिक रीतिरिवाजों से मनाते है।

गणगौर दो तरह से मनाया जाता है। जिस तरह मारवाड़ी लोग इसे मनाते है ठीक, उसी तरह मध्यप्रदेश मे, निमाड़ी लोग भी इसे उतने ही उमंग से मनाते है। त्यौहार एक है परन्तु, दोनों के पूजा के तरीके अलग-अलग है। जहा मारवाड़ी लोग सोलह दिन की पूजा करते है वही, निमाड़ी लोग मुख्य रूप से तीन दिन की गणगौर मनाते है।

Gangaur Festival गणगौर पूजन का महत्व

हिंदू धर्म में गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर सुहागि स्त्री के द्वारा मनाया जाता है। इसमें कुंवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधी-विधान से गणगौर जिसमें, भगवान शिव व माता गौरा का पूजन करती है। इस पूजन का महत्व कुंवारी कन्या के लिये, अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि, सुहागिन स्त्री अपने पति की दीर्घायु की कामना के उद्देश्य से व्रत करती हैं। सुहागिनें सोलह श्रृंगार कर पूरे सोलह दिन विधी-विधान से पूजन करती है।

Gangaur Festival गणगौर पूजन सामग्री

जिस तरह, इस पूजन का बहुत महत्व है उसी तरह, पूजा सामग्री का भी पूर्ण होना बेहद ही आवश्यक है।

लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा
ताम्बे का कलश
काली मिट्टी/होली की राख़
दो मिट्टी के कुंडे/गमले
मिट्टी का दीपक
कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहन्दी, गुलाल, अबीर, काजल
घी
फूल,दुब,आम के पत्ते
पानी से भरा कलश
पान के पत्ते
नारियल
सुपारी
गणगौर के कपडे
गेहू
बॉस की टोकनी
चुनरी का कपड़ा

उद्यापन की सामग्री

उपरोक्त सभी सामग्री, उद्यापन मे भी लगती है लेकिन, उसके अलावा भी कुछ सामग्री है जोकि, आखरी दिन उद्यापन मे आवश्यक होती है।

सीरा (हलवा)
पूड़ी
गेहू
आटे के गुने (फल)
साड़ी
सुहाग या सोलह श्रंगार का समान आदि।

Gangaur Festival गणगौर पूजन की विधि

मारवाड़ी महिलाएं सोलह दिनों तक गणगौर पूजती है। जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है।

यह गणगौर अकेली नहीं, जोड़े के साथ पूजी जाती है। अपने साथ अन्य सोलह कुंवारी कन्याओं को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है। सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से पर्व को मनाती है अंत में, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है।

फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा यानी कि जिस दिन रंगों से होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा शुरू होती है। ऐसी नवविवाहिता जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे 16 दिनों तक उन्ही के घर गणगौर की पूजा की जाती है।

सबसे पहले चौकी लगा कर, उस पर सातिया यानी की स्वातिक बना कर, पूजन किया जाता है। जिसके बाद पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है। ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है।

जिसके बाद चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है।

फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता. उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है।

दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है। उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है।

तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है। उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है।

ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है।

अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है। उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है। गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के, मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है। इन सभी का पूजन होता है, प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है।

गणगौर माता की कथा

राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब। राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये। एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया। छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे। छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे, सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे।

सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया। माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो।

बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी, माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे। ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली, बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा। माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले। माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला, चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली, और छीटो दियो, ओबरी खुल गई।

उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है, सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है। है गणगौर माता, जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना। कहता ने, सुनता ने, सारे परिवार ने।

गणगौर उद्यापन की विधि

सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है।

विधि –

अंतिम दिन गुने (फल)सीरा, पूड़ी, गेहूं गणगौर को चढ़ाए जाते है।
आठ गुने चढ़ाने के बाद चार वापस लिये जाते है।
गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है।
दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है, जिसमे पपड़ी या गुने(फल) रखे जाते है। उसमे सोलह फल खुद के, सोलह फल भाई के, सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है।
चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे। पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है।
शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है।
गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है।