Karwa Chauth Vrat Kahani
कार्तिक की करवा चौथ(Karwa Chauth) की कहानी- एक बार पार्वती जी ने श्री गणेश जी से पूछा की हे पुत्र! कार्तिक की चौथ का क्या विधान है सो कहो? गणेश जी बोले – हे माता! कार्तिक की कृष्ण पक्ष की चौथ को करवा चौथ भी कहते है क्योकि इस दिन पूजा में एक मिट्टी का करवा उसमे जल भरके रखा जाता है। कहीं कहीं इसमें गेंहू भरकर रखते है पर राजस्थान में तो जल ही भरकर रखते है | जिन लड़कियों की शादी हो जाती है और वे ससुराल में यह यह व्रत करती है तो पीहर से प्रथम बार शक्कर बनाकर भेजते है।
करवा चौथ(Karwa Chauth) की कथा
किसी गांव में एक साहूकार रहता था जिसके सात लडके तथा एक लड़की थी। सेठानी और सातो बहुएं चौथ माता का व्रत करती थी। एक बार लड़की ने भी व्रत किया था। प्राय: भोजन के समय वह अपने भाइयो के साथ ही भोजन किया करती थी। उस रोज भी भाई भोजन करने बैठे तो बहिन को भी भोजन के लिए कहा। बहिन बोली नहीं भैया अभी चाँद कहाँ निकला है, में तो चाँद देखकर भौजाइयों के साथ ही भोजन करूंगी।
इस पर एक भाई ने पास के एक नीम के पेड़ पर चढ़कर तथा जलती हुई लकड़ी दिखाकर उसे चलनी आडी देकर दिखाया तो दूसरे भाई ने कहा – देख बहिन चाँद निकल आया है। लड़की भोली थी और उसे भूख भी लग रही थी, उसने आव देखा न ताव, बिना माता तथा भौजाइयों को पूछे ही उस प्रकाश को अर्ध्य देकर भोजन कर लिया।
Karwa Chauth Vrat Kahani
इस तरह व्रत भंग के दोष से चौथ माता उस पर कुपित हो गई। उसी समय उसके ससुराल से आदमी आया की उसका पति बीमार है, उसे ससुराल जाना पड़ा। वहां उसकी बीमारी दिन प्रति दिन बढ़ती गई और दवाइयों में सारा रूपया पैसा खत्म हो गया।
घर पर सभी स्त्री-पुरुष दुखी हो गए। एक दिन उस लड़की को उस करवा चौथ की अपनी गलती की याद आई तो उसने बहुत पश्चाताप करते हुए चौथ माता से क्षमा मांगी और फिर से व्रत करना शुरू किया और अब लगन से व्रत करने लगी तो गणेश जी और चौथ माता की कृपा से उसका पति शीघ्र ही ठीक हो गया। घर में फिर से वही ठाठ बाठ हो गया। इस तरह जो भी भक्ति भाव से इस व्रत को करते है उनको मन वांछित फल की प्राप्ति होती है।