Bhadrapada Chauth Ka Vrat – भाद्रपद चौथ का व्रत से होती है सुख-सौभाग्य में वृद्धि, जानें पूजा मुहूर्त व विधि

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Bhadrapada Chauth Ka Vrat

Bhadrapada Chauth Ka Vrat-भाद्रपद चौथ की व्रत विधि– भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को चौथ माता व गणेशजी भगवान का पूजन किया जाता हैं। इस दिन पुरे दिन उपवास किया जाता हैं। चौथ माता की पूजा के समय महिलाये सौलह सिंगार करके चौथ माता का पूजन कर कथा सुनती हैं। सर्वप्रथम चौकी या बाजोट पर गणेशजी भगवान व यदि हो तो चौथ माता की प्रतिमा स्थापित करे। इसके बाद चौथ माता बिन्दायक जी भगवान के नाम की रोली, मेहँदी, काजल की तेरह-तेरह बिन्दी लगाये।

फिर मोली, चावल चढाये दीवार पर लगी बिंदियो पर मोली का झुला मेहँदी की सहायता से चिपका देवे। चौथ माता के भोग के लिए जो प्रसाद बनाया उसका भोग लगाये। गाय के कन्डो से ज्योत कर घी डालते जाये और चौथ माता बिन्दायक जी की कहानी सुने। चौथ माता का आशीर्वाद ले। चाँद उगने पर चाँद को अरख देकर सासुजी को बायना देकर पांव छूकर आशीवाद ले लेवे।

चाँद को अरख देते समय इस प्रकार बोले –

“चांदी की अगुठी हाथ में लेकर कहानी सुने हुए आखे (साबुत गेहूं) लेकर इस प्रकार बोले –“चांदी को साक्ल्यो गज मोत्या को हार, भादुड़ी चौथ का चन्द्रमा के अरख देते जीवो म्हारा बीर भरतार“

Bhadrapada Chauth Ka Vrat- भाद्रपद चतुर्थी व्रत कथा

एक गाँव में एक बुढ़िया माई के ग्वालियो-बछलियो नाम का बेटा था। बुढ़िया माई बेटे के लिए बारह महीने की बारह चौथ किया करती थी। उसका बेटा लकड़ी काट कर लाता और उसे बेच कर वह दोनों गुजारा करते थे।

बुढ़िया माई रोज उन लकड़ियों में से दो लकड़ियां अलग रख लेती और चौथ के दिन बेटे से छुप कर सामान लाती थी। फिर उस सामान से पांच चूरमे के लड्डू बनती थी। उनमे से एक लड्डू चौथ माता को, एक गणेश जी भगवान को, एक लड्डू ब्राह्मण को देती, एक बेटे को खिलाती और एक स्वयं ग्रहण करती थी।

एक दिन पड़ोसन ने बुढ़िया के बेटे को सिखा दिया की तू इतनी मेहनत करता हैं और तेरी माँ चूरमा बना बना कर बाटती हैं, और तुझे सिर्फ एक लड्डू खिलाती हैं। लड़का पड़ोसन की बातो में आ गया। माँ से बोला माँ में तो इतनी मेहनत करता हूँ और तुम चूरमा बनाकर खाती हो। माँ या तो मुझे छोड़ दो या चौथ माता को छोड़ दो। तब माँ बोली बेटा मैं तो तेरी सुख शांति के लिए चौथ माता का व्रत करती हूँ।

मैं चौथ माता का व्रत करना नही छोड़ सकती। बेटा घर से जाने लगा तब माँ बोली बेटा यह चौथ माता के आखे (कहानी सुने हुए गेहू के दाने) अपने पास रख ले। यदि तुम पर कोई संकट आये तो चौथ माता का नाम लेकर इन्हें पूर देना तुम्हारा संकट टल जायेगा।

Bhadrapada Chauth Ka Vrat

लड़का प्रदेश जाने लगा रास्ते में एक खून की नदी आई कोई रास्ता दिखाई नही दे रहा था। उसने आखे हाथ में लेकर चौथ माता गणेशजी का ध्यान किया और बोला अगर ये नदी सुख कर रास्ता हो जायेगा तो माता आप सच्ची हो। चौथ माता की कृपा से नदी सुख कर रास्ता निकल गया।

आगे चला घना जंगल आया। कोई रास्ता नही सूझ रहा था और चारों तरह जानवर बोलने लग गए। उसने चौथ माता का ध्यान कर आखे पूर दिए और बोला हे चौथ माता रास्ता मिल जाए नहीं तो ये जानवर मुझे खा जाएंगे। इतने में रास्ता मिल गया। आगे चलकर वह एक नगरी में पहुंचा। उस नगरी के राजा के यहाँ एक बरतनों का अहाव पकता जिसमें एक आदमी की बली दी जाती थी।

वह लड़का एक बुढ़िया के घर पहुंचा, तो देखा बुढ़िया रो रही हैं। उस लडके ने पूछा हे बुढ़िया माई! तुम क्यों रो रही हो। तब बुढ़िया बोली मेरे एक ही बेटा हैं और कल अहाव में बली चढने की उसकी बारी हैं। उस लडके ने कहा माई घबरा मत कल तू अपने बेटे की जगह मुझे भेज देना। बस तू मुझे भर पेट भोजन करवा देना।

भोजन करवा कर बुढ़िया ने उस लडके को अपने बेटे के स्थान पर सुला दिया। राजा के सैनिक आये माई सोचने लगी की दूसरे के लड़के को कैसे बलि चढ़ने देऊ पर इतने में ही वो लड़का उठ गया और जाने लगा तो बुढ़िया माई को बोला की मेरी कोथली और लकड़ी संभाल कर रखना। माई सोची आज तक कोई भी वापस नहीं आया ये कैसे आएगा। राजा के आदमी उस लड़के को अहाव में चुन दिए।

वह चौथ माता के आखे पूर कर जल का कलश भर बैठ गया और चौथ गणेशजी का ध्यान किया। हे चौथ माता गणेशजी भगवान मेरा संकट टालना अहाव चुनकर आग लगा दी। एक महीने में पकने वाला अहाव एक ही दिन में पक गया। यह जानकर राजा को आश्चर्य हुआ। स्वयं अहाव देखने आये राजा ने सैनिको को कलश उतारने को कहा। सैनिक कलश उतारने लगे तो अंदर से आवाज आई बर्तन धीरे उतरना सभी को आश्चर्य हुआ।

राजा ने उस लडके से पूछा तुम कौन हो? तुम्हारा जीवन कैसे बचा? तब उसने कहा मैं वही हूँ जिसको अहाव में चुना गया, मेरी माताजी चौथ माता का व्रत करती हैं। चौथ बिन्दायक जी ने मेरी रक्षा की हैं तब राजा को विश्वास नहीं हुआ। उसने दो घौड़े मंगवाये एक पर खुद बैठा और दुसरे पर जंजीरों से बांधकर उसको बैठा दिया और कहा यदि तेरी जंजीरे खुलकर मेरे बंध जाएगी तो मैं चौथ माता को सच्ची मानुगा।

Bhadrapada Chauth Ka Vrat- उस लडके ने श्रद्धा भक्ति से आखे पूर कर कहा-हे चौथ माता अब तक मेरी रक्षा करी, इस बार भी मेरी रक्षा करना। देखते ही देखते लडके की जंजीरे राजा के बंध गई। राजा ने कहा-तेरी चौथ माता सच्ची हैं। राजा ने अपनी कन्या का विवाह उस लडके से कर दिया। बहुत सारी धन-सम्पति देकर विदा किया।

जब लड़का गाँव के पास पहुँचा तो गाँव के लोगो ने कहा माई तेरा बेटा बहू धूमधाम से आ रहे हैं। बुढ़िया माई की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। लड़का माँ के पैरो में गिर गया और बोला माँ ये सब तेरी चौथ माता बिन्दायक जी की कृपा से हुआ हैं। ये सब तेरी चौथ माता के व्रत का फल हैं।

सारी नगरी में कहलवा दिया सब चौथ बिन्दायक जी का व्रत करेंगे हो सके तो बारह महीने की नही तो चार चौथ का व्रत तो सबको अवश्य करना चाहिए। हे चौथ माता! जिस प्रकार उस लडके की रक्षा करी वैसे सबकी रक्षा करना।

।।जय बोलो चौथ माता की जय।।

।।जय बोलो गणेशजी भगवान की जय।।

Bhadrapada Chauth Ka Vrat- भाद्रपद चतुर्थी व्रत कथा-2

एक साहूकार के एक बेटा बहूँ थे। साहूकार के पास पूर्वजो का कमाया हुआ बहुत सारा धन था। दोनों कुछ काम नहीं करते उसी धन सम्पति से अपना गुजारा करते थे। जब बहूँ गाय को रोटी देने नीचे जाती तो उसकी पड़ोसन पूछती बहूँ क्या खाकर आयी हैं? तब वह कहती ठंडी बासी खाकर आयी हूँ।

एक दिन साहूकार के बेटे ने यह बात सुन ली और उसने अपनी माँ को सारी बात बताई और पूछा माँ तू रोज गर्म गर्म खाना परोसती हैं तब भी तेरी बहूँ पड़ोसन से ठंडी बासी खाकर आई हूँ ऐसा क्यों कहती हैं। तब माँ ने कहा बेटा में तो चारो थालिया एक समान लगाती हूँ पर यदि तेरे को विश्वास नहीं हो तो कल अपनी आखें बंद कर सो जाना और अपनी आखों से देख लेना।

दुसरे दिन बेटे ने तबियत खराब होने का बहाना कर लेट गया। उसने देखा उसकी पत्नी ने खीर खांड का गर्मागर्म भोजन किया रोजाना की तरह वह नीचे उतरी पड़ोसन ने पूछा बहूँ क्या खा कर आई हैं? उसने वही रोजाना वाला जवाब दिया ठंडी बासी तब उसके पति ने उसका हाथ पकड़ लिया और पूछा अभी तो तू गर्म गर्म खाना खाकर आई हैं। फिर झूट क्यों बोला तब उसको पत्नी ने कहा ये धन न तो आपका कमाया हैं और ना ही आपके पिताजी का अगर इसी तरह धन खर्च करते रहे तो एक दिन गरीब हो जायेंगे। उसके पति को पत्नी की बात बुरी लगी और वह प्रदेश चला गया।

उसकी पत्नी बारह महीने के चतुर्थी व्रत किया करती थी। उसके पति को प्रदेश में रहते हुये बारह वर्ष बीत गये। तब चौथ माता बिन्दायक जी ने सोचा अब इसके पति को बुलाना चाहिए नहीं तो इस कलियुग में हमें कौन मानेगा? कौन पुजेगा? चौथ माता लडके के सपने में जाकर बोली की तू घर चला जा, तेरी पत्नी तुम्हे बहुत याद करती हैं।

तब उसने कहा हे चौथ माता! मेरा कारोबार फैला हुआ हैं। इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकता तब चौथ माता ने कहा कल प्रात: स्नान ध्यान से निवर्त हो पूजन कर घी का दीपक जलाकर चौथ माता बिदायक जी भगवान का नाम लेकर बैठ जाना हिसाब हो जायेगा देने वाले दे जायेंगे लेने वाले ले जायेंगे उसने सुबह उठकर वैसा ही किया और उसका सारा कारोबार एक दिन में ही सिमट गया।

जब वह घर जा रहा था तो रास्ते में एक सर्प राज अपनी सौ वर्ष की आयु पूर्ण करके जलने जा रहे थे। उसने सोचा सर्पराज जल जायेंगे सिस्कार दिया। तभी सर्पराज ने कहा, हे पापी दुष्ट मैं तो अपनी सर्प योनी से मुक्ति पाने जा रहा था, लेकिन तूने सिस्कार दिया इसलिए मैं तुझे ड्सुगा। तब वह लडका बोला, हे सर्पराज! तुम मुझे अवश्य डस लेना बस मैं एक बार मेरी माँ एवं पत्नी से मिलना चाहता हूँ। आप कल रात मुझे डस लेना।

जब पति घर आया तो बहुत उदास था। माँ और पत्नी से मिला और अपने कमरे में जाकर सो गया। उसकी पत्नी बहुत चतुर थी। उसने पतिं के मन की बात जान कर पहली सीढी पर दूध का कटोरा रख दिया, दूसरी पर बालू मिटटी बिछा दी, तीसरी पर फूल की पंखुड़िया बिखेर दिये, चौथी पर इत्र छिडक दिया, पांचवी पर गुलाल बिछा दी, छटी पर मिठाई रख दी, सातवी पर किडियो के लिए सत्तू डाल दिया और अपनी चोटी नीचे लटका कर कमरे का दरवाजा खुला छोडकर सो गई।

सर्प राज आये दूध पिया खुब बालू में किलोल करी बोले “साहूकार के बेटे तूने सुख तो बहुत दिया पर वचनों से बंधा हूँ ढसुंगा तो अवश्य“ सातों सीढियों पर उसने ऐसा ही कहा जैसे ही वह डसने लगा चौथ माता और बिन्दायक जी ढाल और तलवार बन गये और सर्पराज के चार टुकड़े कर दिए और सीढियों पर खून ही खून हो गया।

सर्पराज की पूछ का टुकड़ा लडके की जुती में गिर गई सोचा डसुगा तो अवश्य पर उसकी पत्नी प्रतिदिन कीड़ी नगरा सीचती थी। चीटियों ने सोचा इसकी पत्नी हमें हमेशा शक्कर आटा खिलाती हैं इसलिए इसकी रक्षा करनी चाहिए और सभी चीटियों ने मिलकर उसकी पूछ को खोखला कर दिया।

जैसे ही सुबह हुई वहाँ खून ही खून हो रहा था। माँ यह देख रोने लगी उसने सोचा मेरे बेटे बहूँ को किसी ने मार दिया। माँ की आवाज सुन बेटा उठा और बोला माँ हमारा बेरी दुश्मन मरा हैं। नीचे आया और बोला मेरे पीछे से किसी ने धर्म पूण्य किया था क्या? तब माँ बोली मैंने तो कुछ नहीं किया पत्नी से पूछा तो पत्नी ने कहा मैंने बारह महीने के चौथ माता के व्रत करती थी।

इसलिए चौथ माता बिन्दायक जी भगवान ने हमारी रक्षा करी हैं। तब सासुजी बोली मैं इसको चार समय खाना देती थी तो फिर इसने चौथ का व्रत कब किया। तब बहूँ बोली एक समय का खाना गाय को खिलाती थी, एक समय का ब्राह्मणी को देती थी, एक समय का जमीन में गाढ़ देती और एक समय का चौथ का पूजन कर चाँद को अर्ध्य देकर में स्वयं खाती थी। यदि विश्वास नहीं हो तो पूछ लो।

जब गाय माता से पूछा तो गाय के मुंह से फेफ के फूल गिरने लगे। ब्राह्मणी से पूछा तो उसने हामी भर ली, जमीन खोद कर देखा तो सोने के चक्र मिले सारी नगरी में कहलवा दिया। सब कोई चौथ माता का व्रत करे व्रत करने से अन्न, धन, लाज, लक्ष्मी, गुणवान सन्तान अखंड सोभाग्यवती होती हैं। जैसी जिसकी मनोकामना होती हैं चौथ माता पूर्ण करती हैं।

हे चौथ माता! जैसे उसके पति की रक्षा करी वैसे सबकी करना।

।।जय बोलो चौथ बिन्दायक जी की जय।।