Ganesh Ji Ki kahani
Ganesh Ji Ki kahani-विष्णु भगवान लक्ष्मी जी से विवाह करने जाने लग। उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बारात में साथ जाने के लिए बुलाया।
वह बारात में जब जाने लगे तो सभी कहने लगे की गणेशजी को तो नहीं लेजाएंगे क्योंकि-सवा मण मुंग, सवा मण चावल, घी का कलेवा – जीमने फिर बुलाओ दुन्द दुन्दालो, सूंड सूंडालो-उछला सा पाँव-छाजला सा कान-मस्तक मोटा-लाजे भीमकुमारी, लाजे कुनणापुर की नारी।
Ganesh Ji Ki kahani
इसे साथ ले जाकर क्या करें। इसको तो घर का ध्यान रखने की लिए छोड़ जाते है। फिर सब कोई बारात में चले गए। उधर नारदजी आकर गणेशजी को बोले-आपका तो बहुत अपमान हो रहा है, बारात अच्छी नहीं लगती इसलिए आपको तो यही छोड़ गये।
तब गणेशजी को गुस्सा आया और उन्होंने चूहे को आज्ञा दी की सारी धरती को खोखली कर दो।
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धरती खोखली होने से भगवान का रथ का पहिया धरती में धंस गया। सब कोई पहिया निकलने लगे पर पहिया नहीं निकला तो फिर उन्होंने किसान खाती को बुलाया। तब किसान खाती आकर पहिये के हाथ लगाकर बोला-जय गणेशजी की और बोलते ही पहिया निकल गया।
सब उसे पूछने लगे की गणेशजी का नाम क्यों लिया।
तब खाती बोला-गणेशजी को बिना याद किये या बिना नाम लिए कोई काम पूरा नहीं होता। सब सोचने लगे हम लोग तो संदेही गणेशजी को छोड़ आये। फिर सब कोई उन्हें बुलाकर लाये और पहले तो गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि परणाई, फिर विष्णु भगवान को लक्ष्मी जी परणाई।
हे बिन्दायक जी महाराज! जैसे भगवान विष्णु का कार्य सिद्ध किया। वैसे ही सबका कार्य सिद्ध करना। कहने, सुनने, वाले सब का करना। हमारा भी करना।