Sawan Somwar Vrat
Sawan Somwar Vrat- इस साल सावन एक नहीं बल्कि दो महीने के होंगे। इस बार शिव भक्तों को शिव जी की उपासना के लिए सबसे ज्यादा समय मिलेगा।
शिव भक्ति का ये पावन महीना 4 जुलाई से शुरु होकर 31 अगस्त तक चलेगा। इस पूरे समय में कुल 8 सोमवार पड़ेगे जिसमें आप भोलेनाथ की आराधना कर सकते हैं।
इस साल सावन का महीना कल यानी 4 जुलाई 2023 से शुरू हो रहा है। पहला सावन सोमवार 10 जुलाई को पड़ रहा है। सावन महीने को लेकर दो पौराणिक कथाएं चली आ रही हैं। इन कथाओं के अनुसार, जानते हैं सबसे पहले सावन सोमवार का व्रत किसने रखा था।
पंचांग के अनुसार 4 जुलाई, मंगलवार से श्रावण मास यानि सावन का महीना शुरू होगा। इस दिन श्रावण मास की प्रतिपदा तिथि है। इसके अगले दिन यानि 10 जुलाई 2023 को, सावन का पहला सोमवार है। श्रावण मास को हिंदू कैलेंडर के अनुसार 5वां महीना माना गया है। श्रावण मास का अंतिम सोमवार 28 अगस्त को है।
सावन सोमवार 2023
सावन का पहला सोमवार: 10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार: 24 जुलाई
सावन का चौथा सोमवार: 31 जुलाई
सावन का पांचवा सोमवार: 07 अगस्त
सावन का छठा सोमवार:14 अगस्त
सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त
सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त
Sawan Somwar Vrat- सोमवार व्रत करने के विधि
सोमवार के दिन प्रातःकाल उठकर सबसे पहले पानी में काला तिल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद पवित्र मन से भगवान शिव का स्मरण करते हुए सोमवार व्रत का संकल्प लें। फिर शिवलिंग की सफेद फूल, सफेद चंदन, पंचामृत, चावल, सुपारी, बेल पत्र, आदि से पूजा करें। पूजा के दौरान “ॐ सों सोमाय नम:” का मंत्र लगातार जपते रहें। शिव के मंत्र का जप हमेशा रुद्राक्ष की माला से करें।
Sawan Somwar Vrat- सावन सोमवार व्रत रेसिपी
पहला सावन सोमवार व्रत 10 जुलाई को पड़ रहा है और आखिरी 28 अगस्त को। मान्यता है कि सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार का व्रत रखने से भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है। बहुत से लोग सावन के पूरे महीने प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करते हैं। इस दिन व्रत का पालन करने वाले दिनभर व्रत रख के शाम को सात्विक भोजन करते हैं। कुछ फलाहार व्रत भी करते हैं। कई लोग व्रत में सेंधा नमक का सेवन करते हैं कुछ लोग इसको भी नहीं खाते हैं। तो व्रत के लिए हम आपको कुछ रेसिपी बताते है –
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Sawan Somwar Vrat- सावन सोमवार व्रत कथा
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं था, इस कारण वह बहुत दुखी रहता था। पुत्र पाने के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था।
उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूरी करने का आग्रह किया. पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म होता है, जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया।
साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था।
राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया।
लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था. उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।
जब चुन्नी पर लिखी बातें राजकुमारी ने पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया, जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है।
मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।
जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है, लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।
माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।
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पहली पौराणिक कथा
सावन महीने के दौरान भगवान शिव के साथ भगवान परशुराम की भी पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने ही कांवड़ की परंपरा को शुरू किया था।
इस महीने के दौरान भगवान परशुराम ने सोमवार को कांवड़ में गंगा जल भरकर और शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाकर नियमित रूप से अपने देवता की पूजा की। भगवान शिव को ‘सावन का सोमवार’ विशेष रूप से प्रिय है, इसलिए सावन के महीने में सोमवार का विशेष महत्व है। यह भी कहा जाता है कि भगवान परशुराम के कारण ही भगवान शिव का व्रत और पूजा शुरू हुई थी।
दूसरी पौराणिक कथा
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से पूछा कि उन्हें विशेष रूप से सावन के महीने में क्यों पूजा जाता है। तब महादेव ने उन्हें बताया कि अपने पिता दक्ष के घर में योग शक्ति से अपने शरीर का त्याग करने से पहले देवी सती ने अपने हर जन्म में भगवान शिव से विवाह करने का संकल्प लिया था।
अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमवान और मैनावती की पुत्री के रूप में जन्म लिया। उन्होंने सावन के महीने में उपवास किया और भगवान शिव से विवाह किया और उनके साथ एक सुखी जीवन व्यतीत किया। तब से सावन का महीना भगवान शिव के लिए महत्वपूर्ण हो गया।