Friars And Parrots
Friars And Parrots- हिमालय की तराई के वन में घनी अमराइयों के बीच बनी कुटिया में एक हष्ट-पुष्ट तपस्वी रहते थे। उनसे जो भी मिलता था, बहुत प्रभावित होता था। नदी में स्नान करके कमण्डल में जल भर कर लाना, पूजा करना और पक्षियों को दाना डालना तपस्वी का नित्य कर्म था।
वन के सारे पशु-पक्षियों का स्वच्छन्द घूमना, कलरव करना, उछल-कूद करना आदि ही तपस्वी का परिवार और संसार था।
एक दिन पूजा से उठते ही तपस्वी ने तोतो की टे-टे और पक्षियों की फड़फड़ाहट सुनी। कुटिया से बाहर आने पर उन्होंने देखा कि एक चिड़ीमार कई पक्षियों को जाल में पकड़कर ले जा रहा है। उन्हें पीड़ा हुई। उन्होंने कहा कि भैया, इन्हे छोड़ दो, उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
चिड़ीमार ने तपस्वी को प्रणाम किया और बोला, गुरुदेव, में इनको पकड़ कर इन्हे मारता नहीं नहीं, इन्हे पालता हूँ, इन्हे खाना देता हूँ, बोलना सिखाता हूँ और जब ये अच्छे बोलने लगते है तो इन्हे बेचकर अपने परिवार का पेट पालता हूँ।
और पढ़ें:-
Friars And Parrots
तपस्वी सोचने लगे कि पक्षी पकडना इसका कर्म है तो पक्षियों को बंधन से बचाना मेरा धर्म है तपस्वी ने पक्षो को ऐसा पाठ पढ़ाने का निश्चय किया जिससे वे बचना सीख जाये।
तपस्वी ने दूसरे दिन दाना डालते समय पक्षो को पढ़ाना शुरू किया – दाना चुगते समय सावधान रहेँगे। लालच नहीं करेंगे। चिड़ीमार के चककर में नहीं आयेंगे। पहले तो पकड़ी दाना चुगते रहे, पर सीखे कुछ नहीं। काफी प्रयास के बाद थोड़े ही दिनो में सभी तोते बोलने लगे।
तोतो के बोलना सिख जाने पर तपस्वी निश्चित हो गये और प्रयाग के मेले में चले गए। मेले से लौटकर देखा तो उन्हें कुछ पक्षी कम नजर आये। वे सोचने लगे कि तोते तो पूरी तरह पढ़ चुके थे। वे फँस तो सकते ही नहीं। दूसरे दिन स्नान करके जाते समय उन्हें कई पक्षियों की आवाजे सुनाई दी।
तोते तो उनके द्धारा सिखाया गया पाठ दोहरा रहे थे। तपस्वी ने वहाँ जाकर देखा कि तोते तो चिड़ीमार के जल में फँसे हुए ही अपना पाठ दोहरा रहे है। वे निराश थे। वे तोतो को तो कुछ न सीखा सके, परन्तु तोतो ने उन्हें सीखा दिया।
शिक्षा :
हमे समझते हुए सुनना, बोलना एवं सोच-समझकर अपेक्षित व्यवहार करना चाहिए।