The Crow And The Peacock
एक बार की बात है एक जंगल काला कौआ रहता था। वह अपने रूप रंग से संतुष्ट नहीं था, न ही अपनी बिरादरी से था। और उसी जंगल में एक मोर भी रहता था । वह मोर जैसा सुंदर बनना चाहता था।
जब वह दूसरे कोए से मिलता, तो कौवों के रूप रंग की बुराई करता कि उसने कौवा बनकर इस धरती पर क्यों जन्म लिया। साथी कोए उसे समझाते कि जैसा रूप रंग मिला है, उसके साथ संतुष्ट रहो।
एक दिन कोए को एक स्थान पर बिखरे हुए ढेर सारे मोर पंख दिखाई पड़े। उसने सारे मोर पंख उठाकर अपनी पूंछ में बांध लिया और अब वह भी मोर बन गया है ।
वह तुरंत वह अपने समूह के सरदार के पास गया और अकड़ कर बोला, “सरदार! जैसा कि आप देख ही रहे हैं, मैं अब मोर बन गया हूँ। मैं कोए की बिरादरी छोड़कर मोरों की बिरादरी में जा रहा हूँ।
कोए का सरदार उसकी इस गुस्ताखी पर चकित रह गया। कौआ मोरों के पास पहुँचा। यह साबित करने के लिए कि वह भी मोर बन गया है, वह उनके सामने अपनी पूंछ दिखा-दिखा कर घूमने लगा।
मोरों ने जब उसे मोर पंख अपनी पूंछ में बांधकर घूमते हुए देखा, तो उस पर खूब हँसे। फिर उन्होंने सोचा कि आज इस कोए का मोर बनने का भूत उतारते हैं।
The Crow And The Peacock
उन्होंने मिलकर कोए की बहुत धुनाई की। कौआ जान बचाकर भागा और अपने समूह के सरदार के पास पहुँचा।
वह उनसे बोला, “सरदार! मोरों ने मुझे बहुत मारा। कोए के सरदार को उसकी अकड़ याद थी। वह सोचने लगा – ‘बहुत अकड़ रहा था तू। अभी तेरी अकड़ भी उतरता हूँ।
उसने अपने साथियों को बुलाया और सबने मिलकर उस कोए को मार-मार कर अधमरा कर दिया। कौवे का सरदार बोला, “तुझ जैसे कोए की हमारे समूह को आवश्कता नहीं।
सीख:- हमने जैसे रूप रंग के साथ जन्म लिया है, उसका सम्मान करना चाहिए।