The Swan And The Owl
The Swan And The Owl:- जंगल में नदी के किनारे एक हंस रहता था. एक दिन एक उल्लू उड़ता-उड़ता उस जंगल में आ पहुँचा। वहाँ जब नदी किनारे मज़े से खेलते हुए हंस पर उसकी नज़र पड़ी, तो वह मित्रता करने उसके पास चला गया।
हंस की प्रशंसा करते हुए वह बोला, “मित्र! तुम कितने सुंदर हो? तुमसे सुंदर पक्षी मैंने कभी नहीं देखा. मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूँ. क्या तुम मेरी मित्रता स्वीकार करोगे?” हंस ने उसकी मित्रता स्वीकार कर ली. उस दिन के बाद से दोनों नदी किनारे एक साथ समय बिताने करने लगे। वे दोनों ढेर सारी बातें करते और एक साथ खेलते. हंस उल्लू को मित्र के रूप में पाकर बहुत ख़ुश था। उल्लू भी बहुत ख़ुश था।
एक दिन वह हंस से बोला, “मित्र! मुझे यहाँ रहते बहुत दिन हो चुके हैं। अब मुझे अपने घर और मित्रों की याद आ रही है। मैं अपने घर वापस जा रहा हूँ। उल्लू के जाने की बात सुनकर हंस दु:खी ज़रूर हुआ, किंतु वह अपना घर छोड़कर नहीं जाना चाहता था।
मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं. किंतु मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकता. गर्मी में जब ये नदी सूखने लगेगी, तो मैं तुम्हारे पास रहने आऊंगा.” उल्लू विदा लेकर वहाँ से चला गया। गर्मी का मौसम आया और नदी का पानी सूखने लगा। तब हंस ने सोचा कि अब मुझे कुछ समय के लिए अपने मित्र उल्लू के पास रहने के लिए जाना चाहिए।
उल्लू एक बड़े बरगद के पेड़ की कोटर में रहता था। हंस जब वहाँ पहुँचा उसके उल्लू को आवाज़ दी, तो उल्लू कोटर में से ही बोला, “आओ मित्र, तुम्हारा स्वागत है. मैं यहीं रहता हूँ. रात हो गई है. ऐसा करो तुम इस पेड़ पर आराम करो।
The Swan And The Owl
हंस पेड़ की एक टहनी पर बैठ कर आराम करने लगा और उल्लू अपने कोटर में. रात में शिकारियों का एक दल उस जंगल से गुजरा और रात गुजारने उसी बरगद के पेड़ ने नीचे रुक गया. जब सुबह हुई।
उनका मंत्रोच्चार सुनकर उल्लू जोर से चीखा। शिकारियों ने इसे अपशकुन माना और उल्लू पर तीर से निशाना साध दिया. तीर अपनी ओर आता हुआ देखकर उल्लू तो तत्परता से उड़कर दूसरे पेड़ के कोटर में जा घुसा। लेकिन, तीर पेड़ की टहनी हंस को जा लगा और उसके प्राण उड़ गए।