Ganga Ki Chaturai – गंगा की चतुराई

Ganga Ki Chaturai

Ganga Ki Chaturai- रामपुर में छगनलाल अपने परिवार के बड़े बेटे मगन, छोटे बेटे जगन और उसकी पत्नी गंगा के साथ रहता था। गंगा चतुर, मित व मृदुभाषी और सोच-समझकर बोलने वाली महिला थी। छगन, मगन और जगन तीनों सीधे-साधे, मस्त स्वभाव के थे।

जो मन में आया वह करते, जो भाया सो खाते और जो समझा वह कह देते। एक बार.छगन को शहर में बने राजा के सुन्दर महल को देखने की इच्छा हुई। गंगा ने समझाया कि हम सब साथ ही चलेंगे, क्योंकि उसे शक था कि कहीं कोई उल्टी-सीधी बात न हो जाये।

छगन प्रात:काल अकेला ही महल देखने चला गया। छगन विशाल महल के कमरों, भूल-भुलैया जैसे घुमावदार छोटे-छोटे गलियारों को देखकर बाहर आया तो पहरेदार के पूछने पर उसने कहा कि महल तो बहुत सुन्दर है, परन्तु राजा के महल के गलियारे इतने सँकरे हैं कि जब वे मरेंगे तो उनकी अर्थी बाहर कैसे निकल सकेगी?

यह सुनकर कि छगन राजा के लिए अनुचित बोल रहा है, पहरेदार ने गुस्से में आकर उसे जेल में डलवा दिया। दोपहर तक छगन के न लौटने पर चिन्तित गंगा ने बड़े बेटे मगन को पिता का पता लगाने हेतु शहर भेजा।

Ganga Ki Chaturai

मगन ने राजा केमगन ने राजा केमहल के बाहर खड़े पहरेदार से अपने पिता का हुलिया बताकर पता कर लिया कि वे वहाँ आये थे और जेल में बंद हैं। सारी घटना सुनकर मगन तुरन्त बोला कि मेरे पिता को राजा की अर्थी की चिन्ता नहीं करनी चाहिए थी, उन्हें क्या पड़ी, चाहे राजा को काट-काट कर बाहर निकालें।

राजा के लिए अनुचित बोलने पर मगन को भी जेल में डाल दिया गया। दिन ढलने पर भी जब दोनों नहीं लौटे तो गंगा ने छोटे बेटे जगन को सारी बात बताकर उनको लेने शहर भेजा।

जगन पहरेदार के पास गया और पूछा तो पता चला कि उन दोनों बंदियों को कल राजा के सामने पेश किया जायेगा। तभी वह बिना सोचे-समझे तुरन्त बोल उठा कि दोनों को ऐसी बात कहने की क्या आवश्यकता थी, चाहे राजा को महल में गाड़ें। ऐसा सुनकर पहरेदार ने उसे भी जेल में बन्द कर दिया। शाम तक जब तीनों ही नहीं लौटे तो गंगा स्वयं शहर गई और पता लगाया कि वे तीनों जैल में बन्द कर दिये गये हैं।

गंगा ने विनम्रतापूर्वक पहरेदार से राजा से मिलवाने के लिए कहा तो वह गंगा को राजा के सामने ले गया। गंगा हाथ जोड़कर कहने लगी कि हुजूर, मेरे बाड़े के तीन पशु आपके बाड़े में बन्द हैं और मैं उन्हें लेने आई हूँ।

राजा के समझ में न आने पर पहरेदार ने उसे सारी घटना सुनाई। राजा ने गंगा से पूछा कि तुमने अपने पति व पुत्रों को पशु क्यों कहा तो गंगा विनम्रता से बोली कि जो व्यक्ति वाणी का उचित प्रयोग नहीं करता वह पशु ही है। मैं उनकी तरफ से आपसे माफी माँगती हूँ। गंगा की बुद्धिमानी और विनम्रता से प्रसन्न होकर राजा ने उसके पति व पुत्रों को मुक्त कर दिया।

शिक्षा :

हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो दूसरों को प्रिय लगे।