Trayodashi Pradosh Vrat – प्रदोष व्रत पर शिव साधना का सर्वोत्तम योग, जानें

Trayodashi-Pradosh-Vrat

Trayodashi Pradosh Vrat

Trayodashi Pradosh Vrat-विधि विधान सहित त्रयोदशी व्रत करनें वालों को सूर्योदय से प्रथम ही ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर शंकर भगवान का स्मरण करना चाहिए व्रत वाले दिन भोजन नहीं करना चाहिए।

सायं काल को जब सूर्यास्त में घंटा भर शेष रहे तब स्नानादि कर्मो से निवृत होकर श्वेत वस्त्र धारण कर व पूजन के स्थान को स्वच्छ जल और गाय के गोबर से लीप कर मंडप को भली भाँती सजाकर पांच रंगो को मिलाकर पद्य पुष्प की आकृति बनाकर कुशा का आसन पर पूर्व तथा उत्तर दिशा से विमुख होकर आसन पर बैठे और शंकर भगवान का पूजन करें।

‘ओउम नमः शिवाय’ इस मंत्र को पढ़ कर जल चढ़ावें और ऋतु फल अर्पण करें। 

नोट:-

सायंकाल के पश्चात और रात्रि आने से पूर्व, दोनों के बीच का संध्या समय का जो वक्र होता है उसे ही प्रदोष कहते है। 

Trayodashi Pradosh Vrat- त्रयोदशी व्रत महात्म्य

त्रयोदशी उर्फ़ प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से विधवा स्त्रियों को अधर्म से गिलनी होती है।

और सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है। बन्दी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते है उनकी सभी कामनायें कैलाश पति शंकर पूरी करते है। सूत जी कहते है त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गऊदान का फल प्राप्त होता है।

इस व्रत को जो विधि विधान और तन मन धन से करता है उसके सभी दुःख दूर हो जाते है सभी माता बहनों को ग्यारस त्रयोदशी या पूरी साल की 23 त्रयोदशी पूरी करने के बाद उद्यापन करना चाहिये। 

Trayodashi Pradosh Vrat- प्रदोष वार परिचय

1 रवि प्रदोष-आयु आरोग्यता के लिये रवि प्रदोष करना चाहिये। 

2 सोम प्रदोष-अभीष्ट सिद्धि को कामना हेतु सोम प्रदोष व्रत करे। 

3 मंगल प्रदोष-रोगो से मुक्त और स्वास्थ्य हेतु मंगल प्रदोष व्रत करे। 

4 बुध प्रदोष-सर्व कामना सिद्धि के लिए बुध प्रदोष व्रत करे। 

5 बृहस्पति प्रदोष-शत्रु विनाश के लिये बृहस्पति प्रदोष करे। 

6 शुक्र प्रदोष-सौभाग्य और स्त्री की समृद्धि के लिये शुक्र प्रदोष व्रत करे। 

7 शनि प्रदोष-पद प्राप्ति कामना हेतु शनि प्रदोष व्रत करे। 

नोट:- त्रयोदशी के दिन जो वार पड़ता हो उसी वार का (त्रयोदशी प्रदोष व्रत) करना चाहियें। तथा उसी दिन की कथा पढ़नी व सुननी चाहिये रवि, सोम, शनि (त्रयोदशी प्रदोष व्रत) अवश्य करें इनसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। 

Trayodashi Pradosh Vrat- ।।रवि त्रयोदशी प्रदोष।। 

दोहा- आयु बुद्धि आरोग्यता, या चाहो सन्तान। 

शिव पूजन विधिवतकरो, दुख हरे भगवान।। 
एक समय सर्व प्राणियों के हितार्थ परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषि समाज द्वारा विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया विज्ञ महर्षियों की एकत्रित सभा में व्यास जी के परम शिष्य पुराण वेता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधार। सूत जी को देखते ही शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों ने खड़े होकर दंडवतप्रणाम किया।

महाज्ञानी सूत जी ने भक्ति भाव से ऋषियों को ह्रदय से लगाया तथा आशीर्वाद दिया।  विद्वान ऋषिगण और सब शिष्य आसनों पर विराजमान हो गए। 

मुनिगण विनीत भाव से पूछने लगे की हे परम दयालु कलि काल में शंकर की भक्ति किस आराधना द्वारा उपलब्ध होगी, हम लोगो को बताने की कृपा कीजिये, क्योंकि कलयुग के सर्व प्राणी पाप कर्म में रत रहकर वेद शास्त्रों से विमुख रहेंगे दीन जन अनेको संकटो से त्रस्त रहेंगे। हे मुनि! श्रेष्ठ कलि काल में सतकर्म की ओर किसी की रूचि न होगी।

जब पुण्य क्षीण हो जायेगा तो मनुष्य की बुद्धि असतकर्मो की ओर खुद ब खुद प्रेरित होगी जिससे दुर्विचारी पुरुष वंश सहित समाप्त हो जायेगे। इस अखिल भूमण्डल पर जो मनुष्य ज्ञानी होकर ज्ञान की शिक्षा नहीं देता उस पर परम पिता परमेश्वर कभी प्रसन्न नहीं होते है।

हे महामुने? ऐसा कौन सा उत्तम व्रत है जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति होती हो कृपा कर बताइये। ऐसा सुनकर दयालु ह्रदय, श्री सूत जी कहने लगे-कि हे श्रेष्ठ मुनियों तथा शौनक जी आप धन्यवाद के पात्र हैं।

Trayodashi Pradosh Vrat- आपके विचार सराहनीय एवं प्रशंसनीय हैं। आप वैष्णव अग्रगण्य हैं क्योंकि आपके ह्रदय में सदा पर-हित की भावना रहती है, इसलिए हे शौनकादि ऋषियों सुनो ! मैं उस व्रत को तुमसे कहता हूं जिसके करने से सब पाप नष्ट हो जाते है, धन वृद्धि कारक, दुखः विनाशक, सुख प्राप्त कराने वाला, संतान देने वाला, मनवांछित फल प्राप्ति कराने वाला यह व्रत तुमको सुनाता हूं ।

जो किसी समय भगवान शंकर ने सती जी को सुनाया था और उनसे प्राप्त यह परम श्रेष्ठ उपदेश मेरे पूज्य पालगुरु जी ने मुझे सुनाया था। जिसे आपको समय पाकर शुभ बेला में मैं सुनाता हूँ। बोलो उमा पति शंकर भगवान की जय।

सूत जी कहने लगे-कि आयु वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ हेतु रवि (त्रयोदशी) का व्रत करें इसकी विधि इस प्रकार है- प्रातः स्नान कर निराहार रहकर शिव ध्यान में मग्न हो शिव मंदिर में जाकर शंकर की पूजा करें पूजा के पश्चातअर्द्ध पुण्ड त्रिपुण्ड का तिलक धारण करें बेल पत्र चढ़ावें, धुप, दीप अक्षत से पूजा करें, ऋतुफल चढ़ावें (ओउम नमः शिवाय) मंत्र का रुद्राज्ञ की माला से जप करें।

ब्राह्मण को भोजन करा सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें।ततपश्यात मौन व्रत धारण करे, व्रती को सत्य भाषण करना आवश्यक है हवन आहुति भी देनी चाहिए।

Trayodashi Pradosh Vrat- मंत्र – “ओहनीं कली नमः शिवाय स्वाहा” से आहुति देनी चाहिए। इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। व्रती पृथ्वी पर शयन करे, एक बार भोजन करे इससे सर्व कार्य सिद्ध होते है।

श्रावण मास में तो इसका विशेष महत्व है यह सर्व सुख धन आरोग्य देने वाला है, यह व्रत इन सब मनोरथो को पूर्ण करता है। हे ऋषिवरों यह प्रदोष व्रत जो मैने आपको बताया किसी समय शंकर जी ने सती जी को और वेदव्यास मुनि ने मुझको सुनाया था।

शौनकादि ऋषि बोले-हे पूज्यवर महामते आपने यह व्रत परम गोपनीय मंगलप्रद, कष्ट निवारक बतलाया है कृपया यह बताने का कष्ट करें की यह व्रत किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ?

श्री सूत जी बोले-हे विचारवान ज्ञानियों! आप शिव के परम भक्त है आपकी भक्ति देखकर मै व्रती पुरुषो की कथा कहता हूँ। एक ग्राम में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था।

उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी, उसके घर एक ही पुत्र रत्न था, एक समय का जिकर है कि वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वह कहने लगे कि हम तुझे मारेंगें, नहीं तो तू अपने पिता का गुप्त धन बतला दे। बालक दीन भाव से कहने लगा की हे बंधुओ! हम अत्यंत दुखी दीन है।

हमारे पास धन कहा है ? चोर फिर कहने लगे की तेरे पास पोटली में क्या बंधा है? बालक ने निःसंकोच उत्तर दिया की मेरी माता ने मुझे रोटी बनाकर बांध दी है।

दूसरा चोर बोला की भाई यह तो अति दीन दुखी ह्रदय है, इसे छोड़िये। बालक इतनी बात सुनकर वहां से प्रस्थान करने लगा और एक नगर में पहुँचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था, बालक वहां बैठ गया और थककर वृक्ष की छाया में सो गया, उस नगर के सिपाही चोरों की खोज कर रहे थे की खोज करते-करते उस बालक के पास गये, सिपाही बालक को भी चोर समझकर राजा के पास ले गये।

Trayodashi Pradosh Vrat

राजा ने उसे कारावास की आज्ञा दे दी। उधर बालक की माँ भगवान शंकर जी का (प्रदोष व्रत) कर रही थी उसी रात्रि राजा को स्वपन हुआ की यह बालक चोर नहीं है प्रातः छोड़ दो नहीं तो आपका वैभव राज्य सब शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा।

रात्रि समाप्त होने पर राजा ने उस बालक से सारा वृतांत पूछा, बालक ने सारा वृतांत कह सुनाया। वृतांत सुन राजा ने सिपाही भेज बालक के माता-पिता पकड़वा कर बुला लिया। राजा ने उन्हें जब भयभीत देखा तो कहा तुम भय करो, तुम्हारा बालक निर्दोष है।

हम तुम्हारी दरिद्रता देखकर पांच गांव दान में देते है। शिव की दया से ब्राह्मण के आनंद होने लगे इस प्रकार जो कोई इस व्रत को करता है उसे आनंद प्राप्त होता है। शौनकादि ऋषि बोले-कि हे दयालु आप कृपा करके सोम त्रयोदशी प्रदोष का व्रत सुनाइये।

Trayodashi Pradosh Vrat- ।।सोम त्रयोदशी प्रदोष व्रत।।

सूत जी बोले-कि हे ऋषिवरों अब मैं (सोमव्रत त्रयोदशी व्रत) का महात्म्य वर्णन करता हूं। इस व्रत के करने से शिव पार्वती प्रसन्न होते है। प्रातः स्नानादि कर शुध्द पवित्र हो शिव पार्वती का ध्यान करके पूजन करें और अधर्य दें। “ओउम नमः शिवाय” इस मंत्र का 108 बार जाप करें फिर स्तुति करें हे प्रभो! मैं इस दुःख सागर में गोते खाता हुआ ऋण भार से दबा, ग्रहदशा से ग्रसित हूँ हे दयालु! मेरी रक्षा कीजिये।

शौनकादि ऋषि बोले-हे पूज्यवर महामते आपने! यह व्रत सम्पूर्ण कामनाओं के लिए बताया है अब कृपा कर यह बताने का कष्ट करें कि यह व्रत किसने किया व क्या फल पाया?
सूत जी बोले-एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। कोई भी उसका धीर धरैया न था। इसलिए वह सुबह होते ही अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल जाती थी और जो भिक्षा में प्राप्त होता था उसी से अपना और अपने पुत्र का पेट भरती थी।

एक दिन ब्राह्मणी भीख मांगकर लौट रही थी तो उसे एक लड़का मिला उसकी दशा बहुत खराब थी। ब्राह्मणी को उस पर दया आ गई। वह उसे अपने साथ घर ले आई।
वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। पड़ोसी राजा ने उसके पिता पर आक्रमण करके उसके राज्य पर कब्जा कर लिया था। इसलिए वह मारा-मारा फिर था। ब्राह्मणी के आश्रम में वह ब्राह्मण कुमार की तरह पलने लगा। एक दिन ब्राह्मण कुमार और राजकुमार खेल रहे थे। उन्हें वहा गंधर्व कन्याओं ने देख लिया। वे राजकुमार पर मोहित हो गई।

Trayodashi Pradosh Vrat- ब्राह्मण कुमार तो घर लौट आया लेकिन राजकुमार अंशुमति नामक गंधर्व कन्या से बात करता रह गया। दूसरे दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने के लिए ले आई। उनको राजकुमार पसंद आया कुछ ही दिनो बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शंकर ने आदेश दिया कि वे अपनी कन्या का विवाह राजकुमार से कर दें फलतः उन्होंने अंशुमति का विवाह राजकुमार से कर दिया।

ब्राह्मणी को ऋषियों ने आज्ञा दे रखी थी कि वह सदा प्रदोष व्रत करती रहे। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेनाओं की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को मार भगाया और अपने पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर वहां आनन्द पूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण को अपना प्रधानमंत्री बनाया।

राजकुमार और ब्राह्मण कुमार के दिन जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत की कृपा से फिरे शंकर भगवान वैसे ही अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं।तभी से प्रदोष व्रत का संसार में बड़ा महत्व है। शौनक ऋषि सूत जी से बोले, दया करें अब आप मंगल प्रदोष की कथा का वर्णन कीजियेगा।

।।भौम त्रयोदशी प्रदोष व्रत।।

सूत जी बोले-अब मैं। (मंगल त्रयोदशी प्रदोष व्रत) का विधि विधान करता हूँ। मंगलवार का दिन व्याधियों का नाशक है इस व्रत में एक समय व्रती को गेहूँ और गुड़ का भोजन करना चाहिये। देव प्रीतमा पर लाल रंग का फूल चढ़ाना और स्वयं लाल वस्त्र धारण करना चाहिये।

इस व्रत के करने से मनुष्य सभी पापों व रोगों से मुक्त है इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। अब मैं। आपको उस बुढ़िया की कथा सुनाता हूँ जिसने यह व्रत किया और मोक्ष को प्राप्त हुई।

अत्यंत प्राचीन काल की घटना है। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। उसके मंगलिया नाम का पुत्र था। वृद्धा को हनुमान जी पर बड़ी श्रद्धा थी। वह प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी का व्रत रख कर यथा विधि उनका भोग लगती थी। इसके अलावा मंगलवार को न तो घर लिपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी।

इसी प्रकार से व्रत रखते हुए जब उसे काफी दिन बीत गए तो हनुमान जी ने सोचा कि चलो आज इस वृद्धा की श्रद्धा की परीक्षा करे। वे साधु का वेष बनाकर उसके द्वार पहुंचे और पुकारा – “हे कोई हनुमान का भक्त जो हमारी इच्छा पूरी करे?” वृद्धा ने यह पुकार सुनी तो बाहर आई और पूछा कि महाराज क्या आज्ञा है?

साधु वेषधारी हनुमान जी बोले कि ‘मैं बहुत भूखा हूँ भोजन खाऊंगा। तू थोड़ी सी जमीन लीप दें।’ वृद्धा बड़ी दुविधा में पड़ गई। अंत में हाथ जोड़कर प्रार्थना की हे महाराज लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त जो आप काम कहें में करने को तैयार हूँ।

साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा ‘तू अपने बेटे को बुला मैं उसे औंधा लिटा कर, उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।’ वृद्धा ने सुना तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई मगर वह वचन हार चुकी थी।

उसने मंगलिया को पुकार कर साधु महाराज के हवाले कर दिया। मगर साधु ऐसे ही मानने वाले न थे। उन्होंने वृद्धा के हाथो से ही मंगलिया को औंधा लिटाकर, उसकी पीठ पर आग जलवाई।

Trayodashi Pradosh Vrat- आग,जलाकर, दुखी मन से वृद्धा अपने घर के अंदर जा घुसी। साधु जब भोजन बना चुका तो उसने वृद्धा को बुलाकर कहा कि वह मंगलिया को पुकारे ताकि वह भी आकर भोग लगा ले।

वृद्धा आंखों में आंसू भरकर कहने लगी कि अब उसका नाम लेकर मेरे ह्रदय को और न दुखाओ लेकिन साधु महाराज न माने तो वृद्धा को भोजन के लिए मंगलिया को पुकारना पड़ा। पुकारने की देर थी मंगलिया बाहर से हंसता हुआ घर में दौड़ा आया मंगलिया को जीता जागता देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ। वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी।

साधु महाराज ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिए। हनुमान जी को अपने आंगन में देखकर वृद्धा को लगा की जीवन सफल हो गया। सूत जी बोले-कि हे ऋषियों अब में आपको (बुद्ध त्रयोदशी प्रदोष की) कथा सुनाता हूँ ध्यान पूर्वक सुनिये।

Trayodashi Pradosh Vrat- ।।बुद्ध त्रयोदशी प्रदोष व्रत।।

1- इस व्रत में, दिन में केवल एक बार भोजन करना चाहिये।
2- इसमें हरी वस्तुओं का प्रयोग किया जाना जरूरी है।
3- यह व्रत शंकर भगवान का व्रत है। शंकर जी की पूजा धूप बेल पत्रादि से की जाती है।

प्राचीन काल की कथा है- एक पुरुष का नया नया विवाह हुआ था। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लिवाने के लिए अपनी ससुराल पहुंचा और उसने अपनी सास से कहा कि बुधवार के दिन ही अपनी पत्नी को लेकर नगर जायेगा।

उस पुरुष के सास ससुर ने, साले सालियों ने उसको समझाया की बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है लेकिन वह पुरुष अपनी जिद से टस से मस नहीं हुआ। विवश होकर सास ससुर को अपने जमाता और पुत्री को विदा करना पड़ा।

पति-पत्नी बैलगाड़ी में चले जा रहे थे। एक नगर के बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नी के लिए पानी लेने गया। पानी लेकर जब वह लौटा तो उसके क्रोध और आश्चर्य की सीमा न रही, क्योंकि उसकी पत्नी किसी अन्य पुरुष के लाये लोटे में से पानी पीकर हंस-हंसकर बतला रही थी।

क्रोध में आग बबूला होकर वह उस आदमी से झगड़ा करने लगा। मगर यह देख उसके आश्चर्य की सीमा न रही की उस पुरुष की शक्ल उस आदमी से हूबहू मिलती थी।

हम शक्ल आदमी को झगड़ते देख जब काफी देर हो गई तो वहां आने-जाने वालो की भीड़ एकत्र हो गई, सिपाही भी आ गया। सिपाही ने स्त्री से पूछा कि इन दोनों में से कौनसा आदमी तेरा पति है, तो वह बेचारी असमंजस में पड गई, क्योंकि दोनों की शक्ल एक दूसरे से बिल्कुल मिलती थी।

बिच राह में अपनी पत्नी को इस तरह लुटा देखकर उस पुरुष की आंख भर आई। वह शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा, कि हे भगवान आप मेरी और मेरी पत्नी की रक्षा करो। मुझसे बड़ी भूल हुई जो मैं बुधवार को पत्नी को विदा करा लाया। भविष्य में ऐसा अपराध कदापि नहीं करूंगा।

उसकी वह प्रार्थना जैसे ही पूरी हुई की दूसरा पुरुष अंतर्ध्यान हो गया और वह पुरुष सकुशल अपनी पत्नी के साथ घर पहुंच गया। उस दिन के बाद पति-पत्नी नियम पूर्वक (बुधवार प्रदोष व्रत) रखने लगे।

Trayodashi Pradosh Vrat- ।।बृहस्पति त्रयोदशी प्रदोष व्रत।।

शत्रु विनाशक भक्ति प्रिय, व्रत है यह अति श्रेष्ठ।
बार मास तिथि सब भी से, है यह व्रत अति श्रेष्ठ।।

कथा इस प्रकार है कि एक बार इन्द्र और वृत्रासुर में घनघोर युद्ध हुआ उस समय देवताओं ने दैत्य सेना पराजित कर नष्ट भष्ट कर दी। अपना विनाश देख अत्युत क्रोधित हो स्वयं युद्ध के लिए उद्यत हुआ। मायावी असुर ने आसुरी माया से भयंकर विकराल रूप धारण किया।

उसके स्वरूप को देख इंद्रादिक सब देवताओं ने इन्द्र के परामर्श से परमगुरु बृहस्पति जी का आवाहन किया गुरु तत्काल आकर कहने लगे-हे देवेन्द्र! सब तुम वृत्रासुर की कथा ध्यान मग्न होकर सुनो- वृत्रासुर प्रथम बड़ा तपस्वी कर्मनिष्ठ था, इसने गंधर्व मादन पर्वत पर उग्र तप करके शिवजी को प्रसन्न किया था।

पूर्व समय में यह चित्ररथ नाम का राजा था, तुम्हारे समीप जो सुरम्य वन है वह इसी का राज्य था, अब साधु प्रवृति विचारवानमहात्मा उसमें आनंद लेते है। भगवान के दर्शन की अनुपम भूमि है, एक समय चित्ररथ स्वेच्छा से कैलाश पर्वत पर चला गया। भगवान का स्वरूप और वाम अंग में जगदम्बा विराजमान देख चित्ररथ हंसा और हाथ जोड़कर शिव शंकर से बोला-हे प्रभो!

हम माया मोहित हो विषयों में फंसे रहने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते है किन्तु देव लोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगन सभा में बैठे। चित्ररथ के ये वचन सुनकर सर्वव्यापी भगवान शिव हंसकर बोले कि हे राजन! मेरा व्यवहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैने मृत्युदाता काल कूट महाविष का पान किया है।

फिर भी तुम साधारण जनों की भांति मेरी हंसी उड़ाते हो। तभी पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ की ओर देखती हुई कहने लगी-ओ दुष्ट तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ मेरी हंसी उड़ाई है, तुझे अपने कर्मो का फल भोगना पड़ेगा।

उपस्थित सभासद महान विशुद्ध प्रकृति के शास्त्र तत्वान्वेषी है, और सनक सनन्दन सनत्कुमार है। ये सर्व अज्ञान के नष्ट हो जाने पर शिव भक्ति में ततपर है, अरे मूर्खराज! तू अति चतुर है अतएव में तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतो के मजाक का दुःसाहस ही नहीं करेगा।

अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर तुझे मैं शाप देती हूँ। अभी पृथ्वी पर चला जा जब जगदम्बा भवानी ने चित्ररथ को यह शाप दिया तो यह तत्क्षण विमान से गिर, राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और प्रख्यात महासुर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

तवष्ठा नाम ऋषि ने उसे श्रेष्ठ तप से उत्पन्न किया और अब वही वृत्रासुर शिव भक्ति में ब्रह्यचर्य से रहा है। इस कारण तुम उसे जीत नहीं सकते अतएव मेरे परामर्श से यह प्रदोष व्रत करो जिससे महाबलशाली दैत्य पर विजय प्राप्त कर सको। गुरुदेव के वचनों को सुनकर सब देवता प्रसन्न हुए और गुरुवाद (प्रदोष व्रत) का विधि विधान से किया राक्षस वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर इंद्रवेष सुख पूर्वक रहने लगे।

बोलो उमापति शंकर महादेव की जय।

।।शुक्रवार प्रदोष व्रत।।

शुक्रवार त्रयोदशी प्रदोष व्रत पूजा विधि सोम प्रदोष के समान ही है इसमें श्वेत रंग खीर जैसे पदार्थ सेवन करने का ही महत्व होता है।
सूत जी बोले-प्राचीन काल की बात है एक नगर में तीन मित्र रहते थे तीनों में ही घनिष्ठ मित्रता थी। उनमें एक राजकुमार, दूसरा ब्राह्मण पुत्र, तीसरा सेठ पुत्र था। राजकुमार व ब्राह्मण पुत्र का विवाह हो चुका था। सेठ पुत्र का विवाह के बाद गोना नहीं हुआ था।

एक दिन तीनों मित्र आपस में स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण पुत्र ने नारियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि-“नारी हीन घर भूतों का डेरा होता है।” सेठ पुत्र ने वचन सुनकर अपनी पत्नी लाने का तुरंत निश्चय किया। सेठ पुत्र अपने घर गया और अपने माता-पिता से अपना निश्चय बताया उन्होंने अपने बेटे से कहा कि शुक्र देवता डूबे हुए है।

इन दिनों बहु-बेटियों को उनके घर से विदा कर लाना शुभ नहीं, अतः शुक्रोदय के बाद तुम अपनी पत्नी को विदा करा लाना। सेठ पुत्र अपनी जिद से टस से मस नहीं हुआ और अपनी ससुराल जा पहुंचा। सास-ससुर को उसके इरादे का पता चला। उन्होंने उसको समझाने की कोशिश की किन्तु वह नहीं माना। उन्हें विवश हो अपनी कन्या की विदा करना पड़ा।

ससुराल से विदा होकर पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया और एक बैल की टांग टूट गयी। पत्नी को भी काफी चोट आई। सेठ पुत्र ने आगे चलने का प्रयास जारी रखा तभी डाकुओं से भेंट हो गई और वे धनधान लूटकर ले गये सेठ पुत्र पत्नी सहित रोता पीटता अपने घर पहुंचा। जाते ही उसे सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्यों को बुलाया उन्होंने देखने के बाद घोषणा की कि सेठ-पुत्र तीन दिन में मर जाएगा।

उसी समय इस घटना का पता ब्राह्मण पुत्र को लगा। उसने सेठ से कहा कि आप अपने लड़के को पत्नी सहित, बहू के घर वापस भेज दो। यह सारी बाधाएं इस लिए आई है, कि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्नी को विदा करा लाया है, यदि यह वहा पहुंच जायेगा तो बच जाएगा।

सेठ को ब्राह्मण पुत्र की बात जंच गई और अपनी पुत्र वधु को वापिस लौटा दिया वहाँ पहुँचते ही सेठ पुत्र की हालत ठीक होनी आरम्भ हो गई। शेष जीवन सुख आनंदपूर्वक व्यतीत किया और अंत में वह पति-पत्नी दोनों स्वर्ग लोक को विमान द्वारा गये।

।।शनि त्रयोदशी प्रदोष व्रत।।

गर्गाचार्य जी ने कहा कि हे महामते! आपने शिव शंकर प्रसन्न हेतु समस्त प्रदोष व्रत का वर्णन किया अब हम (शनि प्रदोष) विधि सुनने की इच्छा रखते है सो कृपा करके सुनाइये। तब सूत जी बोले-हे ऋषिय! निश्चयात्मक रूप से आपका शिव पार्वती के चरणों में अत्यंत प्रेम है मैं आपकी शनि त्रयोदशी के व्रत कि विधि बतलाता हूँ सो ध्यान से सुनें।

पुरातन कथा है कि एक निर्धन ब्राह्मण की स्त्री दरिद्रता से दुखी हो शांडिल्य ऋषि के पास जाकर बोली-हे महामुने! मैं अत्यंत दुखी हूँ दुःख निवारण का उपाय बताइये। मेरे दोनों पुत्र आपकी शरण है। मेरे ज्येष्ठ पुत्र का नाम धर्म जो कि राजपुत्र है। और लघु का नाम शुचिव्रत है, हम दरिद्री है, आप ही हमारा उद्धार कर सकते है, इतनी बात सुन ऋषि ने शिव प्रदोष व्रत करने के लिए कहा, तीनों प्राणी प्रदोष व्रत करने लगे।

कुछ समय पश्चात प्रदोष व्रत आया तीनों ने व्रत का संकल्प लिया छोटा लड़का जिसका नाम शुचिव्रत था एक तालाब पर स्नान करने को गया तो उसे मार्ग में स्वर्ण कलश धन से भरपूर मिला, उसको लेकर वह घर आया, प्रसन्न हो माता से कहा की मां, यह धन मार्ग से प्राप्त हुआ है, माता ने धन देखकर शिव महिमा का वर्णन किया।

राजपुत्र को अपने पास बुलाकर बोली देखो पुत्र यह धन हमे शिवजी की कृपा से प्राप्त हुआ है अतः प्रसाद के रूप में दोनों पुत्र आधा-आधा बांट लो, माता का वचन सुन राजपुत्र शिव पार्वती का ध्यान किया और बोला-पूज्य यह धन आपके पुत्र का ही है मैं इसका अधिकारी नहीं हूँ। मुझे शंकर भगवान और माता पार्वती जब देंगे तब लूंगा।

इतना कहकर वह राजपुत्र शंकर जी की पूजा में लग गया, एक दिन दोनों भाइयों का प्रदेश भृमण का विचार हुआ, वहां अनेक गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा, उन्हें देख शुचिव्रत ने कहा भैया! अब हमें इससे आगे नहीं जाना है इतना कह शुचिव्रत उसी स्थान पर बैठ गया, परन्तु राजपुत्र अकेला ही स्त्रियों के बीच में जा पहुंचा।

वहां एक स्त्री अति सुंदरी राजकुमार को देख मोहित हो गई और राजपुत्र के पास पहुंच कर कहने लगी, कि हे सखियों! इस वन के समीप ही जो दूसरा वन है तुम वहां जाकर देखो भांति-भांति के पुष्प खिले है, बड़ा सुहावना समय है, उसकी शोभा देखकर आओ, मैं यहा बैठी हूँ, मेरे पैर में बहुत पीड़ा है ये सुन सभी सखी दूसरे वन में चली गई। वह सुंदर राजकुमार की ओर देखती रही।

इधर राजकुमार भी कामुक दृष्टि से निहारने लगा, युवती बोली आप कहां रहते है? वन में कैसे पधारे? किस राजा के पुत्र है? क्या नाम है? राजकुमार बोला-मैं विदर्भ नरेश का पुत्र हूँ, आप अपना परिचय दें। युवती बोली-मैं विद्रविक नामक गंधर्व की पुत्री हूँ, मेरा नाम अंशुमति है मैने आपकी मन स्थिति को जान लिया है, कि आप मुझ पर मोहित हैं, विधाता ने हमारा तुम्हारा संयोग मिलाया हैं।

युवती ने मोतियों का हार राजकुमार के गले में डाल दिया। राजकुमार हार स्वीकार करते हुए बोला कि हे भद्रे! मैने आपका प्र्मोपकार स्वीकार कर लिया है, परन्तु में निर्धन हूँ राजकुमार के इन वचनो को सुनकर गंधर्व कन्या बोली कि मैं जैसा कह चुकी हूँ वैसा ही करूंगी, अब आप अपने घर जायें। इतना कह गंधर्व कन्या सखियों से जा मिली। घर जाकर राजकुमार ने शुचिव्रत को सारा वृतांत कह सुनाया।

जब तीसरा दिन आया वह राजपुत्र शुचिव्रत को लेकर उसी वन में जा पहुंचा, वही गंधर्व राज अपनी कन्या को लेकर आ पहुंचा। इन दोनों राजकुमार को आसन दें कहा कि मैं कैलाश पर गया था वहां शंकर जी ने मुझसे कहा की धर्मगुप्त नाम का राजपुत्र है जो इस समय राज्य विहीन निर्धन है, मेरा परमभक्त है, हे गंधर्वराज! तुम उसकी सहायता करो, मैं महादेव जी की आज्ञा से इस कन्या को आपके पास लाया हूँ।

आप इसका निर्वाह करें, मैं आपकी सहायता कर राजगद्दी पर बैठा दूंगा। इस प्रकार गंधर्वराज ने कन्या का विधिवत विवाह कर दिया विशेष धन और सुंदर गंधर्व कन्या को पाकर राजपुत्र अति प्रसन्न हुआ। भगवान कृपा से अपने शत्रुओं का दमन कर के राज्य का सुख भोगने लगा।

।।त्रयोदशी व्रत उद्यापन विधि।।

कार्य सिद्ध होने पर (त्रयोदशी व्रत का उद्यापन करें) एक दिन पूर्व गणेश पूजन करें। घर में अथवा मंदिर में नृत्य कीर्तन द्वारा रात्रि को जागरण करें। प्रातः होते ही स्नानादि से निवृत होकर रंगीन पदम्-पुष्प रोली से मंडल बना उसमे शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजन करें हवन करते समय (उमा सहित ओउम नमः शिवाय मंत्र) से 108 बार जपकर खीर की आहुति दें।

हवन के बाद आरती व शांति पाठ करके दो ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा दें और उनसे यह आशीर्वाद लें कि आपका व्रत सफल हो। यह वचन दोनों पंडित कहें। जो स्त्री-पुरुष इस विधि-विधान से व्रत करके उद्यापन करते है उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है वह मोक्ष को भी प्राप्त होते है। ऐसा स्कंध पुराण में कहा गया है।