Vaishakh Chauth Mata Kahani
Vaishakh Chauth Mata Kahani- एक बार भवानी उमा तथा उसका पुत्र श्री गणेश साथ साथ बैठे बातें कर रहे थे। तभी माता उमा ने पूछा है! वत्स गणेश वैशाखी चौथ का क्या विधि विधान है।
सो कहो? इस चौथ को संकटनाशक चौथ क्यों कहते हैं।
तब भगवान श्री गणेश जी महाराज ने अपने श्री मुख से कहा कि जग जननी माता वैशाख कृष्ण चतुर्थी को होने वाले चौथ सर्व प्रकार के संकट हरने वाली है इसलिए इस चौथ को संकटनाशक चौथ कहते हैं ।इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है।
Vaishakh Chauth Mata Kahani-श्री चौथ माता व्रत की विधि
पूजन विधि – चौथ माता के व्रत के लिए साधक दिन भर भूखा रहे। एक पाटे पर चौथ-गणेश की मूर्ति या फोटो रख दे। यदि फोटो या मूर्ति न हो तो साटिया (स्वास्तिक) मांड दे और पास ही आखा (गेहूं, चावल) रखकर ऊपर जल का कलश रख दे एवं घी का दीपक जलावे। एक थाल में प्रसाद, गुड़, खोपरा, मेहन्दी, लच्छा, धूप, सिंदूर, रोली, चावल रख देवे।
पूजा करते समय अगरबत्ती जला देवे, चौथ-विनायक की मूर्ति एवं जल के कलश पर रोली से तिलक करके चावल लगा देवे। हाथों में मेहन्दी लगाकर लच्छा बांध लेवे, फिर बैसन्दर पर धूप, प्रसाद एवं घी खेवे फिर चौथ की कहानी पढ़े या सुनकर माताजी की आरती करे।
चन्द्रमा उदय होने पर थाली में प्रसाद, अगरबत्ती व जल का कलश ऐसे स्थान पर ले जाए जहां से चन्द्रमा के दर्शन अच्छी तरह होवें, प्रसाद का भोग लगाकर जल चढ़ावे, अगरबत्ती जला देवे और 5 परिक्रमा देवे। फिर प्रसाद खाकर भोजन कर लेवे। बड़ी चौथ को बहुत से भक्त दिन भर खड़े रहकर ऊबी चौथ व्रत करते हैं और चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही बैठते हैं।
Vaishakh Chauth Mata Kahani-वैशाख चौथ व्रत की कहानी।
एक बुढ़िया माई थी। उसके गावलियो बचलियो नाम को बेटो हो। बुढ़िया माई बेटा के लिए बारह महीनों की बारह चौथ करती। बेटा जंगल से लकड़ी लाता, दोनों माँ बेटा उनको बेचकर गुजरा करते थे। बुढ़िया माई रोजाना लकड़ियों में से दो लकड़ी अलग रख लेती, और चौथ के दिन बेटा से छुपकर बेचकर सामान लेकर आती। फिर पांच चूरमा के पिंड बनाती।
एक बेटा ने खिलाती, एक आप खाती, एक चौथ माता के चढाती व दो बांट देती। एक चौथ के दिन बेटा अपनी पड़ोसन के घर गया। उसने चूरमा के लड्डू बना रखे थे। तो उसने पूछा कि, आज क्या है, सो थे चूरमा बनाया है।
पड़ोसन बोली की मैंने तो आज ही बनाया है, तेरी माँ तो हर चौथ के दिन बनावे है। तुमको आज दिया था क्या? बेटा बोला दिया तो था ,पड़ोसन बोली की तुम लकड़ियां लेकर आते हो जिसमे से तेरी माँ छुपाकर बेचकर चूरमा बनावे है।
बेटा माँ के पास गया। बोला की मैं तो इतनी मेहनत से लकड़ियाँ लेकर आता हूँ, तुम चूरमा कर के खाती हो। तुम मुझको छोड़ दो या चौथ माता को। तो बुढ़िया बोली बेटा में तो तेरे लिए ही व्रत करती हूँ, सो तुमको भले ही छोड़ दूँ लेकिन चौथ माता को नहीं छोड़ सकती।
तब बेटे ने घर छोड़ने का फैसला किया। तो माँ बोली की तुम जा तो रहे हो लेकिन मेरा हाथ का ये आखा लेकर जा तेरे ऊपर जो भी संकट आएगा चौथ माता के नाम पर इन्हे पोआर देना। संकट दूर हो जायेगा। बेटा ने सोचा की है तो झूटी बात लेकिन बात रखने के लिए ले लेवा।
घर से चला थोड़ी दूर गया होगा और देखता है कि, खून की नदी बह रही है। किधर से भी रास्ता नहीं था। तब उसने माँ के दिए आखा पोआर के बोला कि, हे चौथ माता अगर ये नदी सुख कर रास्ता हो जाये तो तुम सच्ची हो। इतने में ही नदी सुख कर रास्ता हो जाता है। थोड़ा आगे चलने पर तो रात होने लगी और सुनसान जंगल आ गया।
तब आखा पोआर कर बोला कि, हे चौथ माता मने रास्ता मिल जावे नहीं तो ये जानवर मुझे खा जायेंगे। इतने में ही रास्ता मिल गया। आगे एक राजा की नगरी में गया। राजा हर महीने एक आदमी की बलि देता था। वह एक बुढ़िया के घर में गया तो देखता है कि, बुढ़िया माई रोटी बनाते हुए रो रही थी। तब उसने पूछा की माई तुम रो क्यों रही हो। बुढ़िया बोली की मेरे एक ही बेटा है, और आज वो राजा की बलि चढ़ जायेगा।
मैं ये रोटी उसके लिए बना रही हूँ। वो बोला कि माई ये रोटी मुझे खिला दो। मैं तेरे बेटे के बदले चला जाऊंगा। माई बोली रोटी खिला दूंगी लेकिन तुझे कैसे भेज दूँ। उसने उसे रोटी खिला दी। रात में सोते समय बोला कि, राजा का बुलावा आये तो मेरे को जगा देना। आधी रात को बुलावा आया। बुढ़िया माई सोचने लगी की पराये पूत ने कैसे बलि चढ़ा दूँ। पर इतने में ही वह जग गया। और जाने लगा, और बुढ़िया माई से बोला की मेरी पोटली और लाठी रखी है।
बुढ़िया माई सोची की आज तक ही कोई वापस नहीं आया। ये कैसे आएगा ? राजा का आदमी उसे साथ लेकर चला गया। वहाँ पर उसे कच्चे घड़े पकने वाले कुंड (आवा) में चुन दिया। जब वो चुना जा रहा था, तो उसने आखा पुआर कर कहा कि, हे चौथ माता दो संकट टाल दिये ये भी तुम ही टालो। इतने में आवा पक कर तैयार हो गया। दो तीन दिन बाद आवा के पास बच्चे खेल रहे थे।
बच्चों ने खेल खेल में आवा पर कंकरी मारी तो उसमें से आवाज आयी। बच्चों ने राजा के आदमियों के पास जाकर कहा कि आवा पक गया। राजा के आदमियों ने सोचा कि छ महीने में पकने वाले आवा इतनी जल्दी कैसे पक गया। उन्होंने ये बात को बताई। राजा ने जाकर देखा तो सारे बर्तन सोना चांदी के कलस हो गए। वे बर्तन उतारने लगे तो अंदर से आवाज आई कि, धीरे धीरे उतारना अंदर मानस है।
राजा ने सोचा की इसमें से पहले तो कभी कोई ऐसी आवाज नहीं आई। राजा ने पूछा की कोण हो तुम। तो उसने अंदर से ही कहा कि, में तो वो ही हूँ, जिसे अापने तीन दिन पहले इसमें चुनकर बलि ली थी। उन्होंने खोलकर देखा तो अंदर वो ही आदमी है, जिसे तीन दिन पहले उन्होंने इस आवा में चुनकर बलि चढ़ाया था। उन्होंने सारी बात बताई। उसे महल ले जाया गया।
राजा ने पूछा की तुम कोण हो, और बच कैसे गए? तो उसने कहा कि, मेरी माँ चौथ का व्रत करती थी, उसी की वजह से बच गया। तब राजा ने कहा की ये झूट है। इसकी परीक्षा लेनी होगी। राजा ने दो घोड़े मंगवाए। एक पर स्वयं चढ़ गया और दूसरे पर उसको चढ़ा दिया।
उसके हाथों और पैरों में जंजीर डाल दी गयी। राजा ने कहा की अब अपन जंगल की तरफ चलते है, अगर ये जंजीरें खुल कर मेरे हाथ पैरों में आ जाएँगी तो तुम्हारी माँ की चौथ माता सच्ची है। थोड़ी दूर चलने पर ऐसा ही हो गया। राजा के हाथ पैरों में जंजीरें जकड़ गयी। फिर उस लड़के ने बड़ी मुश्किल से राजा को वापस राजमहल पहुँचाया और जाने लगा। तब राजा ने उसे रोकने के आदेश दिए।
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फिर राजा ने उसे अपनी बेटी के साथ विवाह करने के लिए कहा तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया। राजा ने उसे वही महल में ही रहने के लिए अलग से सारे साधन उपलब्ध करवा दिए। वह राज काज में सहयोग करने लगा। कुछ महीनो बाद उसे घर की याद आई। एक दिन मौसम बहुत ही खराब हो रखा था चारों और बिजलिया कड़क रही थी। उसे अपनी माँ की याद आयी।
तो उसने अपनी पत्नी से कहा की आज तो बिजली मेरे गाँव की तरफ चमक रही है। तो उसकी पत्नी यानि राजा की बेटी ने कहा कि, आप के गाँव भी है क्या? तो उसने बताया की हाँ। उसने अपनी माँ के बारे में बताया। फिर कहा कि गाँव चलेंगे। दूसरे दिन सुबह वे गाँव के लिए रवाना हुए तो राजा ने खूब सारा धन देकर उन्हें विदा किया। गाँव के समीप पहुँचने पर लोगों को पता चल गया।
उसकी माँ से बुढ़ापे में लकड़ियां तो कटती नहीं थी इसलिए गोबर के उपले बनाकर उन्हें बेचकर जीवन यापन कर रही थी। वह उपले बीन कर ला रही थी, तो उसी पड़ोसन ने बतया की बुढ़िया माई तेरे बेटे बहु आ रहे है। तो उसने कहा की मेरे भाग्य में बेटे बहु कहाँ है ? एक बेटा था जिसे भी तुमने लगा भुजा के निकाल दिया। तो उसने कहा की में सच बता रही हूँ। विश्वास नहीं हो तो देख लो।
बुढ़िया ने छत पर जाकर देखा तो सच में गाँव की तरफ एक लश्कर आ रहा था। घर आकर बेटे बहु ने पाँव छुए। बेटे ने कहा की माँ तेरी चौथ माता के प्रभाव से मैं आज जिन्दा हूँ। उसी दिन उसने पुरे गाँव में हरकारा करवा दिया की कल मेरे घर पर सामूहिक भोजन है। दूसरे दिन सबको भोजन करने के बाद खूब सारे उपहार देकर कहा चौथ का व्रत करे।
चौथ माता जैसा उस बुढ़िया माई और उसके बेटे को संकट से बचाया वैसे सबको बचाना। पढ़ने वाले को, सुनंने वाले को, और फॉरवर्ड करने वाले को और उनके परिवार को।
Vaishakh Chauth Mata Kahani-बिंदायकजी की कहानी
एक बार गणेश जी वेश बदल कर एक चम्मच में दूध और अपनी मुठी में कुछ चावल लेकर घूम रहे थे। हर घर जाकर कह रहे थे, कोइ माई खीर बना दो। सब ने मना कर दिया कि इतने से खीर नहीं बनेगी। अंत में वह एक बुढ़िया के घर पहुंचा और बोला माई खीर बना दो।
बुढ़िया हंस कर बोली पगले इतने से खीर कैसे बनेगी फिर भी में थाली बैठी हूँ, लाओ बना देती हूँ। वह छोटा बर्तन लेकर आई तो गणेश जी बोले माई बड़ा बर्तन चढ़ाकर बना, मैं गाँव में बुलावा देकर आता हूँ। बुढ़िया माई ने सोचा बावला है, लेकिन उसका कहा कर देती हूँ। उसने बड़े बर्तन में खीर बनने के लिए चढ़ा दी। उधर गणेश जी कहकर चले गए। थोड़ी देर में खीर से पूरा बर्तन भर गया।
बुढ़िया माई ने सोचा वो गाँव में बुलावे की कहकर गया है। पता नहीं बाद में खीर बचे या न। तो बुढ़िया ने अपने लिए खीर निकाल कर गणेश जी का नाम से भोग चढ़ा कर खाने लगी। इतने में ही गणेश जी आ गए। बुढ़िया बोली आ जावो खीर खा लो, तो गणेश जी बोले माई मैंने तो जब तुमने भोग लगते समय मुझे याद किया तब ही खा ली। अब पुरे गाँव को खिलावो।
जब तक पूरा गाँव नहीं खा लेता तब तक तेरे भंडार में खीर खत्म नहीं होगी। ये कहकर गणेश जी चले गए। थोड़ देर में बुढ़िया घर के अंदर गई तो देखा की सारे बर्तन अनाज से भरे हुए है। सोना, चांदी, गहने, आभूषणों से पूरा घर भर गया।
हे ! बिंदायक जी महाराज जैसा उस बुढ़िया माई को दिया सब को देना। पढ़ने वाले, सुनने वाले, कहने वाले व फॉरवर्ड करने वाले को और उनके परिवार को।