Door of Happiness – सुख का द्धार

Door of Happiness

Door of Happiness- जेठ के महीने की दोपहर में धूप से घबराकर देवा आम की छाया में आ बैठा और पास ही पड़े घड़े में से पानी पिया। गर्मी से राहत मिलते ही वह पेड़ के तने से पीठ लगाकर अधलेटा-सा पेड़ के पत्तों को देखने लगा। पेड़ पर पत्तों के साथ आम भी हवा में झूल रहे थे।

वह सोचने लगा कि यह पेड़ हमें फल, छाया और ईंधन देता है। उसी समय देवा की पत्नी खाना लेकर आ गई जिसे सबने एक साथ बैठकर खाया। देवा रोज काम करता और थक जाने पर इसी पेड़ के नीचे विश्राम करता। कभी-कभी आस-पास के किसान भी इसी पेड़ के नीचे आराम करने आ जाते क्योंकि ऐसा घना और बड़ा पेड़ कहीं नहीं था।

अब देवा के बेटे जवान हो गये थे और उनकी शादी से पहले मकान बनाना जरूरी था। मकान बनने लगा तो खिड़कियाँ, दरवाजे और रोशनदान के लिए लकड़ी की आवश्यकता हुई। देवा और उसका बेटा पास के कस्बे में लकड़ी खरीदने चले गये; लकड़ी के भाव आसमान छू रहे थे और इतनी महँगी लकड़ी खरीदना उसके वश की बात नहीं थी, और इसलिए वे बिना लकड़ी खरीदे ही अपने गाँव आ गये।

Door of Happiness

घर आकर देवा ने अपनी पत्नी को सारी बात बताई जिसे उसका छोटा बेटा दीना भी ध्यान से सुन रहा था वह बोला कि पिताजी, अपने खेत के आम के पेड़ को काट देना चाहिए। देवा की पत्नी ने कहा कि पूरा पेड़ न काटकर उसकी बड़ी शाखाएँ काट ली जाएँ ताकि वर्षा होने पर वह फिर से हरा हो जायेगा।

देवा का मन इस सुझाव को मानने के लिए तैयार नहीं था, परन्तु इमारती लकड़ी के लिए और कोई विकल्प नहीं होने के कारण विवश होकर उसे पेड़ की शाखाएँ काटने का निर्णय लेना पड़ा।

अगले दिन देवा के दोनों बेटों ने पेड़ की भारी मोटी-मोटी शाखाओं को काट डाला जिससे छाते के समान फैला हुआ पेड़ ठूँठ के समान लगने लगा। शाखाओं के सूख जाने पर दरवाजे और खिड़कियाँ बनाई गई और मकान बनकर तैयार हो गया। सोमा की शादी धूमधाम से हुई। नया मकान सभी को बहुत पसन्द आया। वर्षा आरम्भ हुई और चारों ओर हरियाली छा गई परन्तु ठूँठ में प्राणों का संचार नहीं हुआ।

Door of Happiness

पेड़ की चिन्ता उसे घुन की तरह खाये जा रही थी। उसे इस बात का दुख था कि पुरखों की इस विरासत को उसने निजी लाभ के लिए नष्ट कर दिया। धीरे-धीरे देवा ने खाना-पीना बन्द कर दिया और खाट पकड़ ली। देवा के पुत्रों ने उसका खूब इलाज कराया परन्तु मर्ज प्रतिदिन बढ़ता ही चला गया|

बीमारी का असली कारण किसी को भी पता नहीं था। सभी रिश्तेदार और चित-परिचित देवा की कुशल-क्षेम पूछने आने लगे। एक दिन गाँव के सरपंच और कुछ लोग आकर देवा को बहुत समझाने लगे। सरपंच जी के बहुत समझाने पर देवा ने कहा कि मुझे अपने स्वार्थ के लिए पुत्र के समान पेड़ को काट देने का दु:ख खाये जा रहा है।

इस पर सरपंच ने कहा कि “तुमने एक पेड़ काटा तो तुम्हें दूसरा नया पेड़ लगाना चाहिए। अरे भाई ! पेड़ काटने का दुःख है तो लगाने का सुख भी है। आज से हम सब यही प्रतिज्ञा करते हैं कि गाँव में किसी के भी घर में कोई भी खुशी का अवसर होगा तब नया पेड़ लगाकर पर्यावरण संवर्द्धन का कार्य करेंगे।”

सरपंच की इस बात को सुनकर देवा इतना प्रसन्न हुआ कि उसकी सारी मानसिक पीड़ा गायब हो गई। उसने सरपंच से कहा कि मैं कल ही खेत पर जाकर नये पेड़ लगाऊँगा। अब तो गाँव में पेड़ लगाने की होड़ लग गई और प्रत्येक खुशी के अवसर पर लोग पेड़ लगाने लगे।

देवा ने भी अनेक प्रकार के पेड़ लगाये जिससे उसके खेत की शोभा में चार चाँद लग गये। कटे हुए पेड़ के पास एक उत्तम किस्म का पेड़ लहरा रहा था। वृक्षारोपण के कार्य ने देवा के लिए सुख का नया द्धार खोल दिया।