Rishi Panchami Vrat – ऋषि पंचमी व्रत कथा पूजन महत्व एवं उद्यापन विधि

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Rishi Panchami Vrat

Rishi Panchami Vrat-अनजाने में हुए भूल की माफी के लिए हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का व्रत करने की महिमा का बखान किया गया है। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। इस व्रत से एक दिन पहले तीज और गणेश चतुर्थी का व्रत भी होता है। इस साल ऋषि पंचमी 1 सितंबर शनिवार को मनाई जाएगी।

ऋषि पंचमी व्रत की विधि

Rishi Panchami Vrat- पंचमी तिथि को सुबह जल्दी उठकर इस व्रत को विधि विधान से पूजा करने से व्यक्ति का कल्याण होता है। इस दिन सप्त ऋषियों की पांरपरिक पूजा का विधान है। 7 ऋषियों के नाम हैं – ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, ऋषि विश्वमित्र, ऋषि गौतम, ऋषि जमदग्नि और ऋषि वशिष्ठ। इन्होंने समाज कल्याण के लिए काम किया था। इसलिए उनके सम्मान में यह व्रत और पूजन करते हैं।

हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कोई भी व्यक्ति खासकर महिलाएं इस दिन सप्त ऋषियों का पूजन करते है और सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं। प्राचीन किवंदति है कि, महिलाओं को रजस्वला दोष लगता है। इसलिए कहते हैं कि ऋषि पंचमी व्रत करने से मासिक धर्म के दौरान भोजन को दूषित किए गए पाप से मुक्ति मिलती है।

ऋषि पंचमी पूजा मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त – 1 सितंबर को प्रातः कल 04:29 बजे से 05:14 बजे तक
रवि योग – 1 सितंबर को प्रातः काल 05:58 बजे से 12:12 बजे तक
अभिजित मुहूर्त – 1 सितंबर को 11:55 AM से 12:46 PM तक
विजय मुहूर्त – 1 सितंबर दोपहर बाद 02:28 बजे से 03:19 बजे तक

ऋषि पंचमी व्रत 2022 शुभ तिथि

पंचमी तिथि प्रारंभ – 31 अगस्त 2022 को 03:22 PM बजे
पंचमी तिथि समाप्त – 01 सितंबर 2022 को 02:49 PM बजे
ऋषि पंचमी 2022 पूजा मुहूर्त – 1 सितंबर 2022 सुबह 11: 05 AM मिनट से लेकर 01: 37 मिनट PM तक.
ऋषि पंचमी की पूजा अवधि – 02 घण्टे 33 मिनट

ऋषि पंचमी पर किए गए अनुष्ठान क्या हैं?

ऋषि पंचमी के सभी रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को अच्छे इरादे और शुद्ध दिल के साथ किया जाना चाहिए। व्यक्तियों के इरादे शरीर और आत्मा के शुद्धिकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भक्त सुबह उठते हैं और उठने के बाद ही पवित्र स्नान करते हैं|
लोग इस दिन एक कठोर ऋषि पंचमी व्रत रखते हैं।
इस उपवास को रखने का मुख्य उद्देश्य एक व्यक्ति को पूरी तरह से पवित्र करना है|
लोग उपमर्गा (जड़ी बूटी) के साथ दांतों की सफाई करने और डाटावार्न जड़ी बूटी के साथ स्नान करके कई चीजें करते हैं|
इन सभी जड़ी बूटियों का विशेष रूप से शरीर के बाहरी शुद्धिकरण के लिए उपयोग किया जाता है और मक्खन, तुलसी, दूध, और दही का मिश्रण भी किसी की आत्मा के शुद्धिकरण के लिए पिया जाता है|
इस दिन, भक्त सात महान संतों के सप्तऋषि की पूजा करते हैं जो सभी अनुष्ठानों के अंतिम पहलू का अंतिम भाग होता है।
सभी सात ऋषियों की उपस्थिति का आह्वान करने के लिए, प्रार्थनाओं और कई पवित्र चीजें जैसे फूल और खाद्य उत्पादों की पेशकश की जाती है। महान सप्तर्षि के नाम वशिष्ठ, जमदग्मी, गौथमा, विश्वमित्र, भारद्वाजा, अट्री और कश्यप हैं।

ऋषि पंचमी 2022 व्रत पूजा मंत्र

‘कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः’॥

ऋषि पंचमी व्रत कथा

Rishi Panchami Vrat- इस व्रत के सन्दर्भ में ब्रह्मा जी ने इस व्रत को पापो से दूर करने वाला व्रत कहा हैं, इसको करने से महिलायें दोष मुक्त होती हैं : कथा कुछ इस प्रकार हैं :

एक राज्य में ब्राह्मण पति पत्नी रहते थे, वे धर्म पालन में अग्रणी थे। उनकी दो संताने थी एक पुत्र एवं दूसरी पुत्री। दोनों ब्राहमण दम्पति ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे कुल में किया लेकिन कुछ वक्त बाद ही दामाद की मृत्यु हो गई। वैधव्य व्रत का पालन करने हेतु बेटी नदी किनारे एक कुटियाँ में वास करने लगी। कुछ समय बाद बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे। उसकी ऐसी दशा देख ब्राह्मणी ने ब्राहमण से इसका कारण पूछा। ब्राहमण ने ध्यान लगा कर अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा जिसमे उसकी बेटी ने माहवारी के समय बर्तनों का स्पर्श किया और वर्तमान जन्म में भी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया इसलिए उसके जीवन में सौभाग्य नहीं हैं। कारण जानने के बाद ब्राह्मण की पुत्री ने विधि विधान के साथ व्रत किया। उसके प्रताप से उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई।

ऋषि पंचमी उद्यापन विधि

विधि पूर्वक पूजा कर इस दिन ब्राहमण भोज करवाया जाता हैं।
सात ब्रह्मणों को सप्त ऋषि का रूप मान कर उन्हें दान दिया जाता हैं।
अपनी श्रद्धानुसार दान का विधान हैं।
इस व्रत से जुड़ा एक प्रसंग महाभारत में देखने को मिलता हैं, जब उतरा के युद्ध के समय उसके गर्भ में पल रहे नवजात की मृत्यु हो गई। तब इन्होने ज्ञानी पंडितों का परामर्श लिया।

जिन्होंने उसे ऋषि पंचमी का व्रत कर विधि विधान के अनुसार पूजा करने को कहा। उसने ऐसा ही किया जिसके परिणामस्वरूप राजा परीक्षित का जन्म हुआ, जो आगे चलकर हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी बने।

यह व्रत जीवन की दुर्गति को खत्म का जीव मात्र के सभी पापों को धो देता हैं। ऋषि पंचमी का व्रत रखने वाली स्त्री को सम्पूर्ण दोषों से मुक्ति के साथ ही सन्तान प्राप्ति व सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं।

इस दिन व्रत रखने वाली स्त्री विधि पूर्वक पूजा कर ऋषि पंचमी की कथा सुने तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा सात ब्राह्मणों को श्रद्धानुसार दान देकर विदा करे।