Kartik Mass Ke Vrat
Kartik Mass Ke Vrat- भारत में वर्ष के चार माह सभी धर्मो में विशेष त्यौहार चलते रहते हैं। इन सभी त्यौहारों का उद्देश्य ईश्वर के प्रति आस्था एवम प्रेम एकता का भाव जगाना हैं।चौमासे या चातुर्मास के चार महीनो की विशेषता सभी प्रान्तों में अलग-अलग बताई जाती हैं और उसका निर्वाह किया जाता है, हिंदी कैलेंडर में सबसे अंतिम माह कार्तिक का होता हैं।
कार्तिक में ही बड़े-बड़े त्यौहार मनाये जाते हैं, जो भारत देश के प्रमुख त्यौहारों में से हैं। वैसे तो भारत वर्ष में वर्ष भर ही त्यौहारों का ताता लगा रहता है, लेकिन चार माह के त्यौहार तप एवम पूजा पाठ की दृष्टि से अहम् माने जाते हैं, उसमे कार्तिक माह में भी उपवास, पूजा पाठ एवम ब्रह्म मुहूर्त में स्नान का विशेष महत्व हैं।
Kartik Mass Ke Vrat- कार्तिक माह का महत्व
कार्तिक हिंदी पंचाग का आँठवा महिना है, कार्तिक के महीने में दामोदर भगवान की पूजा की जाती हैं। यह महिना शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है, जिसके बीच में कई विशेष त्यौहार मनाये जाते हैं। शरद पूर्णिमा महत्व कथा पूजा विधि एवम कविता जानने के लिए पढ़े।
इस माह में पवित्र नदियों में ब्रह्ममुहूर्त में स्नान का बहुत अधिक महत्व होता हैं। घर की महिलायें सुबह जल्दी उठ स्नान करती हैं, यह स्नान कुँवारी एवम वैवाहिक दोनों के लिए श्रेष्ठ हैं।
इस माह की एकादशी जिसे प्रबोधिनी एकादशी अथवा देव उठनी एकादशी कहा जाता हैं इसका सर्वाधिक महत्व होता है, इस दिन भगवान विष्णु चार माह की निंद्रा के बाद उठते हैं जिसके बाद से मांगलिक कार्य शुरू किये जाते हैं।
इस महीने तप एवम पूजा पाठ उपवास का महत्व होता है, जिसके फलस्वरूप जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है। इस माह में तप के फलस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इस माह के श्रद्धा से पालन करने पर दीन दुखियों का उद्धार होता है, जिसका महत्त्व स्वयम विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा था। इस माह के प्रताप से रोगियों के रोग दूर होते हैं जीवन विलासिता से मुक्ति मिलती हैं।
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कार्तिक पूजा विधि नियम
कार्तिक माह में कई तरह के नियमो का पालन किया जाता है, जिससे मनुष्य के जीवन में त्याग एवम सैयम के भाव उत्पन्न होते हैं।
पुरे माह मॉस, मदिरा आदि व्यसन का त्याग किया जाता हैं। कई लोग प्याज, लहसुन, बैंगन आदि का सेवन भी निषेध मानते हैं।
इन दिनों फर्श पर सोना उपयुक्त माना जाता हैं कहते हैं। इससे मनुष्य का स्वभाव कोमल होता हैं उसमे निहित अहम का भाव खत्म हो जाता हैं।
कार्तिक में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया जाता हैं।
तुलसी एवम सूर्य देव को जल चढ़ाया जाता हैं।
काम वासना का विचार इस माह में छोड़ दिया जाता हैं.ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता हैं।
इस प्रकार पुरे माह नियमो का पालन किया जाता हैं।
कार्तिक माह के त्यौहार
1 करवा चौथ : कृष्ण पक्ष चतुर्थी
2 अहौई अष्टमी एवम कालाष्टमी : कृष्ण पक्ष अष्टमी
3 रामा एकादशी
4 धन तेरस
5 नरक चौदस
6 दिवाली, कमला जयंती
7 गोवर्धन पूजा अन्नकूट
8 भाई दूज / यम द्वितीया : शुक्ल पक्ष द्वितीय
9 कार्तिक छठ पूजा
10 गोपाष्टमी
11 अक्षय नवमी/ आँवला नवमी, जगदद्त्तात्री पूजा
12 देव उठनी एकादशी/ प्रबोधिनी
13 तुलसी विवाह
यह सभी कार्तिक माह में आने वाले प्रमुख त्यौहार हैं। पूरा महिना कई त्यौहार मनाये जाते हैं। कार्तिक माह में कई तरह के पाठ, भगवत गीताआदि सुनने का महत्व होता हैं। यह पूरा महीने मनुष्य जाति नियमो में बंधकर ईश्वर भक्ति करता हैं।
कार्तिक माह के नियम
पहला नियम : दीपदान – धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।
दूसरा नियम : तुलसी पूजा – इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।
तीसरा नियम : भूमि पर शयन – भूमि पर सोना कार्तिक मास का तीसरा प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।
चौथा नियम : तेल लगाना वर्जित – कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए। कार्तिक मास में अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित है।
पांचवां नियम : दलहन (दालों) खाना निषेध – कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं खाना चाहिए।
छठा नियम : ब्रह्मचर्य का पालन – कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर पति-पत्नी को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं।
सातवां नियम : संयम रखें – कार्तिक मास का व्रत करने वालों को चाहिए कि वह तपस्वियों के समान व्यवहार करें अर्थात कम बोले, किसी की निंदा या विवाद न करें, मन पर संयम रखें आदि।