Illy Ghuniya Ki Katha – इल्ली घुणिया की कथा

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Illy Ghuniya Ki Katha

Illy Ghuniya Ki Katha- इल्ली घुणिया की कथा कार्तिक महीने में कही और सुनी जाती है। व्रत में कहानी कहने और सुनने से व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।

एक इल्ली थी और एक घुणिया था। इल्ली बोली – आ घुणिया, दोनों कार्तिक नहायें।

धुनिया बोला – तू ही कार्तिक स्नान कर ले। मैं तो नहीं करूँगा। तू तो गिरी छुहारे में पड़ी रहती है, तेरे में ताकत है। तू ही नहा ले। मैं तो मोठ बाजरे में पड़ा रहता हूँ, इसलिए ताकत नहीं है कार्तिक नहाने की।इल्ली तो किसी तरह राजकुमारी के पल्ले में छिपकर रोजाना कार्तिक नहा आती। घुन नहीं नहाया।

Illy Ghuniya Ki Katha

कार्तिक की पूनम के दिन दोनों मर गए। बाद में इल्ली के कार्तिक स्नान के पुण्य के कारण इल्ली अगले जन्म में राजा के घर राजकुमारी बनी और घुन राजा के घर में मेंढक बन गया। जब राजकुमारी का ब्याह रचाया गया तो विदाई के वक्त बेटी ससुराल जाने लगी तो उसने अपनी पालकी रुकवाई और राजा से कहा यह मेंढ़क मुझे चाहिए।

राजा ने कहा यह क्या माँगा कुछ हीरे जवाहरात मांगो। राजकुमारी बोली मुझे तो मेंढ़क ही चाहिए। मेंढ़क को रथ से बांध दिया गया। राजकुमारी ने महल में पहुँच कर मेंढ़क को सीढ़ी के नीचे बांध दिया।

Illy Ghuniya Ki Katha

जब भी राजकुमारी सीढ़ी चढ़ती उतरती तो मेंढ़क कहता –

ए चटको मटको, श्याम सुंदरी, थोड़ा पानी तो पिला।

राजकुमारी कहती –

भाई घुणिया पहले कार्तिक तो नहा।

एक दिन राजकुमारी की देवरानी और जेठानी ने दोनों को बात करते सुन लिया। उन्होंने राजकुमार से कहा तू रानी लाया है या जादूगरनी ? ये इंसानो से बात नहीं करती, जानवरों से बातें करती है।

राजकुमार बोला जब तक मैं खुद नहीं देखूं विश्वास नहीं करूँगा। वह छिपकर बैठ गया। मेंढ़क और राजकुमारी में वही बातें हुई।

राजकुमार ने गुस्से में तलवार निकाल ली और पूछा – मेंढ़क से क्या बात हो रही थी, सच बताओ नहीं तो अच्छा नहीं होगा।

राजकुमारी ने सारी बात बताई कहा – पिछले जन्म में यह घुणिया था और मैं इल्ली। मैंने इसे कार्तिक नहाने को कहा पर यह नहीं नहाया और मैं तो नहा ली। हम दोनो पिछले जन्म की बात ही कहते हैं।

राजकुमार ने कहा – कार्तिक में गंगा में नहाने का इतना फल मिलता है तो हम दोनों जोड़े से कार्तिक नहायेंगे और दान पुण्य करेंगे।

दोनों ने जोड़े से कार्तिक स्नान किया। इससे उनका राज्य और धन – संपत्ति अत्यधिक बढ़ गये।

तब राजा ने कहा कि कार्तिक स्नान का इतना पुण्य है तो हम दोनों जोड़े से नहायेंगे। रानी-राजा ने अत्यंत प्रसन्न मन से कार्तिक स्नान कर दोनों ने दान–पुण्य किया और सारी नगरी में कहलवा दिया की सब कार्तिक स्नान कर नहाया हुआ पानी घुन पे डालेगे जिससे घुन की मोक्ष हुई।

हे कार्तिक! भगवान श्रीहरि विष्णु जैसा सुख इल्ली को दिया वैसा सबको देना।