Govardhan Puja/Annakoot – गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) जानें पूजा और विधि

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Govardhan Puja/Annakoot

Govardhan Puja/Annakoot- कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा व अन्नकूट का प्रसाद होगा। गोबर से भगवान गोवर्धन बनाने के साथ ही महिलाएं गाय की पूजा करेंगी। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा का भी विधान है। इस दिन मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है, इस दिन 56 या 108 तरह के पकवान बनाकर श्रीकृष्‍ण को उनका भोग लगाया जाता है। इन पकवानों को ‘अन्‍नकूट’ कहा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी अंगुली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और इंसानी जिंदगियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था। भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिक रूप में गोवर्धनजी को 56 भोग के साथ ही नाना प्रकार के पकवानों का भोग लगाकर उसका वितरण किया जाता है। ऐसे में चलिए जानते हैं इसके बारे में कुछ खास बातें।

Govardhan Puja/Annakoot- अन्नकूट क्‍या है

अन्नकूट पर भगवान कृष्ण को अलग तरह के पकवान चढ़ाए जाते हैं, इस दिन कृष्ण को भोग लगाए जाते हैं। मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से अन्नकूट और गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।

एक और मान्यता है कि एक बार इंद्र अभिमान में चूर हो गए और सात दिन तक लगातार बारिश करने लगे। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनके अहंकार को तोड़ने और जनता की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को ही अंगुली पर उठा लिया था और तभी से गोवर्धन की पूजा होती है।

Govardhan Puja/Annakoot- गोवर्धन पूजा की विधि

इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल की मालिश करने के बाद में स्नान करने का प्राचीन परंपरा है। इस दिन आप सुबह जल्दी उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाइए और अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान करिए पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत पूरी श्रद्धा भाव से तैयार कीजिए। इसे लेटे हुये पुरुष की आकृति में बनाया जाता है।

यदि आप से ठीक तरीके से नहीं बने तो आप चाहे जैसा बना लीजिए। प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप इसे तैयार कर लीजिए फूल, पत्ती, टहनीयो एवं गाय की आकृतियों से या फिर आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे किसी भी आकृति से सजा लीजिए।

गोवर्धन की आकृति तैयार कर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है और वहां एक कटोरि या मिट्टी का दीपक रखा जाता है फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

गोवर्धन पूजा के दौरान एक मंत्र का जाप करना चाहिए।

कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के साथ ही गायों को स्नान कराने की उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परंपरा भी है इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान करा कर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सिंह पर घी लगाए गुड खिलाएं। गाय की पूजा के बाद में एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है।

फल मिठाई इत्यादि आप पूजा के दौरान गोवर्धन में अर्पित करिए गन्ना चढ़ाई है और एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर झरनी में से छिड्कते हैं। गोवर्धन जो बनाया जाता है गोबर का उसमें दहि डालकर उसको झरनी से छानीये और फिर गोवर्धन के गीत गाते हुए गोवर्धन की सात बार परिक्रमा की जाती है।

परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व दुसारा व्यक्ति अन्न यानि कि जौ लेकर चलते हैं और जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुआ चलता है और दुसरा अन्न यानि कि जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।

Govardhan Puja/Annakoot- गोवर्धन पूजा की कथा

श्री कृष्ण ने देखा कि सभी बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं।

उनकी बात मान कर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी। इसके बाद इंद्र को पता लगा कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं और अपनी भूल का एहसास हुआ।

बाद में इंद्र देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।