Shravana Putrada Ekadashi
Shravana Putrada Ekadashi-पुत्रदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित व्रत में से एक है। संतान की लंबी आयु और संतान प्राप्ति की कामना करने वाली महिलाएं पुत्रदा एकादशी के व्रत को करती हैं। पुत्रदा एकादशी को साल में दो बार आती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर महीने की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहा जाता है।
साल की पहली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी या पौष शुक्ल पुत्रदा एकादशी कहते हैं। यह एकादशी दिसंबर या जनवरी महीने में आती है। दूसरी पुत्रदा एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहते हैं। यह जुलाई या अगस्त के महीने में आती है।
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त
श्रावण पुत्रदा एकादशी पारणा मुहूर्त :06:34:51 से 08:29:04 तक 19, अगस्त को
अवधि :1 घंटे 54 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय :06:34:51 पर 19, अगस्त को
पुत्रदा एकादशी का महत्व
सभी एकादशियों में पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की आराधना की जाती है। कहते हैं कि जो भी भक्त पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरे तन, मन और जतन से करते हैं उन्हें संतान रूपी रत्न मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो कोई भी पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि
एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का ध्यान करें।
फिर स्नान कर साफ कपड़े धारण करें।
घर के मंदिर में श्री हरि विष्णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लें।
कलश की स्थापना करें।
अब कलश में लाल वस्त्र बांधकर उसकी पूजा करें।
भगवान विष्णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं।
इसके बाद विष्णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें।
पूरे दिन निराहार रहें।
शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें।
दूसरे दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाएं।
यथा सामर्थ्य दान देकर व्रत का पारण करें।
श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
Shravana Putrada Ekadashi-प्राचीन काल में भद्रावतीपुरी नाम का एक नगर था। यहां पर सुकेतुमान नाम का एक राजा राज करता था। इसके विवाह के बाद काफी समय तक उसकी कोई संताई नहीं हुई। इस बात से राजा व रानी काफी दुखी रहा करते थे। राजा हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहता था कि जब उसकी मृत्यु हो जाएगी तो उसका अंतिम संस्कार कौन करेगा? उसके पितृों का तर्पण कौन करेगा?
वह पूरे दिन इसी सोच में डूबा रहता था। एक दिन परेशान राजा घोड़े पर सवार होकर वन की तरफ चल दिया। कुच समय बाद वहा जंगल के बीच में पहुंच गया। जंगह काफी घना था। इस बीच उन्हें प्यास भी लगने लगी। राजा पानी की तलाश में तालाब के पास पहुंच गए। यहां उनको आश्रम दिखाई दिया जहां कुछ ऋृषि रहते थे। वहां जाकर राजा ने जल ग्रहण किया और ऋषियों से मिलने आश्रम में चले गए। यहां उन्होंने ऋषि-मुनियों को प्रणाम किया जो वेदपाठ कर रहे थे।
राजा ने ऋषियों से वेदपाठ करने का कारण जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है। अगर कोई व्यक्ति इस दिन व्रत करता है और पूजा करता है तो उसे संतान की प्राप्ति होती है। यह सुनकर राजा बेहद खुश हुआ और उसने पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का प्रण किया। राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। साथ ही विष्णु के बाल गोपाल स्वरूप की अराधना भी की। सुकेतुमान ने द्वादशी को पारण किया। इस व्रत का प्रभाव ऐसा हुआ कि उसकी पत्नी ने एक सुंदर संतान को जन्म दिया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति पुत्रदा एकादशी की व्रत करता है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है। साथ ही कथा सुनने के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।