Gopashtami – गोपाष्टमी पूजन विधि और कथा

Gopashtami

Gopashtami

Gopashtami- कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण लीला आरम्भ की थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार में गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है । गाय की सेवा से पुण्यफल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन पूरे मन से गौ-माता की आराधना करने से जातकों की हर मनोकामना पूरी होती है।

Gopashtami- गोपाष्टमी पूजन विधि

इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है। इस दिन प्रातः काल उठ कर नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान करते है, प्रातः काल ही गौओं और उनके बछड़ों को भी स्नान कराया जाता है।

गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि के थापे लगाए जाते हैं, गायों को सजाया जाता है, प्रातः काल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ माता की पूजा की जाती है और आरती उतरी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है।

Gopashtami- गोपाष्टमी पर्व की कथा
गोपाष्टमी से जुडी कई कथाये प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है:

Gopashtami- कथा 1:

जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गैया चराना चाहते हैं। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी, कि अब वे गैया ही चरायेंगे। नन्द बाबा ने गैया चराने के लिए पंडित महाराज को मुहूर्त निकालने कह दिया।

पंडित बाबू ने पूरा पंचाग देख लिया और बड़े अचरज में आकर कहा कि अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नही हैं अगले बरस तक. शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था। वह दिन गोपाष्टमी का था। जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया। उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी।

उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी, तब ही मैं यह पहनूंगा। मैया ये देख भावुक हो जाती हैं और कृष्ण बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चारण के लिए ले जाते।

इस प्रकार कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन से गोपाष्टमी मनाई जाती हैं। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था। गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा था। इन्होने गाय के महत्व को सभी के सामने रखा। स्वयं भगवान ने गौ माता की सेवा की।

कथा 2:

कहा जाता है कृष्ण जी ने अपनी सबसे छोटी ऊँगली से गोबर्धन पर्वत को उठा लिया था। जिसके बाद से उस दिन गोबर्धन पूजा की जाती है। ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरसा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचाने के लिए कृष्ण ने जी 7 दिनन तक पर्वत को अपनी एक ऊँगली में उठाये रखा था। गोपाष्टमी के दिन ही भगवान् इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोबर्धन पर्वत नीचे रखा था।

कथा 3:

गोपाष्टमी ने जुड़ी एक बात और ये है कि राधा भी गाय को चराने के लिए वन में जाना चाहती थी, लेकिन लड़की होने की वजह से उन्हें इस बात के लिए कोई हाँ नहीं करता था। जिसके बाद राधा को एक तरकीब सूझी, उन्होंने ग्वाला जैसे कपड़े पहने और वन में श्रीकृष्ण के साथ गाय चराने चली गई।

कृष्ण जी के हर मंदिर में इस दिन विशेष आयोजन होते है। वृन्दावन, मथुरा, नाथद्वारा में कई दिनों पहले से इसकी तैयारी होती है। नाथद्वारा में 100 से भी अधिक गाय और उनके ग्वाले मंदिर में जाकर पूजा करते है। गायों को बहुत सुंदर ढंग से सजाया जाता है।