Jal Jhulni Ekadashi – जलझूलनी एकादशी का व्रत

Jal-Jhulni-Ekadashi

Jal Jhulni Ekadashi

Jal Jhulni Ekadashi- हिंदू कैलेंडर के मुताबिक हर मास शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में एक-एक एकादशी तिथि पड़ती है। साल में पड़ने वाली सभी एकादशी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। भाद्रपद मास के शक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहा जाता है।

इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी, पद्मा एकादशी भी करते हैं। जलझूलनी एकादशी का व्रत और पूजन 06 सितंबर को किया जाएगा। इस एकदशी व्रत को दौरान भी भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना होती है। इस दिन भगवान विष्ण को वामन अवतार की पूजा होती है।

Jal Jhulni Ekadashi जलझूलनी एकादशी तिथि और शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ- सितम्बर 06, 2022, मंगलवार, प्रातः 05:54 से
एकादशी तिथि समाप्त- सितम्बर 07, 2022, बुधवार प्रातः 03:04 बजे
जलझूलनी/परिवर्तिनी एकादशी पारण समय- 8 सितम्बर, गुरुवार, प्रातः 06:02 से 08:33 तक

Jal Jhulni Ekadashi जलझूलनी/ पदमा एकादशी व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यता है कि कान्हा जी के जन्म के बाद इसी दिन यशोदा मैया ने उनका जल (घाट) पूजन किया था। इसे डोल ग्यारस के नाम से भी जानते हैं। वहीं भगवान विष्णु चातुर्मास के दौरान चार महीनों तक पाताल लोक में विश्राम करते हैं और भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अपनी शेष शैय्या पर करवट बदलते हैं।

इस दिन विष्णु जी के वामन अवतार की पूजा का विधान है। वहीं पदमा एकादशी के दिन दान-पुण्य करने से भगवान विष्णु की कृपा से मनुष्य के सौभाग्य में वृद्धि होती है तथा रोग-शोक मिटते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति पदमा एकादशी का व्रत करता है उसे वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है।

जलझूलनी एकादशी पूजन विधि

एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठे व जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्नान आदि के बाद स्वच्छ पीले वस्त्र पहन लें। अब अपने पूजा घर को साफ़ कर पूर्व दिशा की ओर चौकी रखें और इसपर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं।

फिर उस चौकी पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित करें। अब इस चौकी पर कलश की स्थापना करें और चौकी को अच्छे तरह से सजाएं। अब अपने दाएं हाथ में थोड़ा गंगाजल और एक फूल लेकर व्रत संकल्प लें और भगवान के समक्ष मनवांछित फल की कामना करें।

पूजन विधि के अगले चरण में अब भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की प्रतिमा का पंचामृत से स्नान कराएं। अब भगवान को हल्दी, पुष्प, मिठाई आदि अर्पित करें और धूप या दीपक जलाएं। इसके बाद एकादशी की व्रत कथा सुने और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

पूजा समापन के समय भगवान की आरती गाएं और भगवन वासुदेव के मंत्रो का जाप करें। आरती समापत होने के बाद भगवान से पूजन विधि में हुई त्रुटियोंके लिए शमा याचना करें।

एक बात जो एकादशी के दिन विशेष तौर पर ध्यान रखनी चाहिए, वो यह है की इस दिन गलती से भी चावल नहीं खाने चाहिए और ना ही पूजा में इसका इस्तेमाल करना चाहिए।

Jal Jhulni Ekadashi जलझूलनी एकादशी व्रत कथा

महाभारत के समय की बात है। सम्राट युधिष्ठिर कहने लगे हे भगवन! भाद्रपद में पड़ने वाली एकादशी का वर्णन करें। इस भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है, इसकी विधि क्या है तथा इसके महत्व को भी समझाइये। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- पापों से मुक्त करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली इस कथा को मैं तुमसे विस्तारपूर्वक कहूंगा, इसे ध्यानपूर्वक सुनना।

भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर को सम्बोधित कर कहने लगें कि हे सम्राट! आज मैं आपको समस्त पापों को नष्ट करने वाली कथा सुनाने जा रहा हूँ। त्रेतायुग के समय एक बलि नामक राक्षस था। बलि मेरा परम भक्त था। वह अलग अलग प्रकार से मेरा नित्य पूजन किया करता था और हवन आदि का आयोजन करता था। लेकिन इंद्र से शत्रुता के चलते उसने समस्त इंद्रलोक पर अपना आधिपत्य जमा लिया था।

बलि के कष्टों से परेशान होकर सभी देवता गण एकत्रित होकर भगवान से मदद मांगने गए। इंद्र देव समेत बृहस्पति नतमस्तक होकर भगवान के समक्ष प्रार्थना करने लगें। जिसके बाद मैंने वामन रूप धारण कर धरती पर पांचवां अवतार लिया और फिर महा पराक्रमी राजा बलि को जीत लिया।

भगवान कृष्ण के इन वचनों को सुनकर युधिष्ठिर के मन में प्रश्न आया और उन्होंने पूछा की हे केशव! आपने वामन अवतार में भला कैसे उस पराक्रमी दैत्य को परास्त किया? श्री कृष्ण ने उत्तर देते हुए कहा की मैंने एक वामन ब्रह्मण का भेस बनाया और जब बलि ब्राह्मणो के साथ यज्ञ कर रहा था। तब मैंने वहां पहुंचकर बलि से बस तीन पग भूमि की याचना की।

राजा बलि ने सोचा तीन पग भूमि तो बहुत कम होती है और यह समझकर उन्होंने मुझे तीन पग भूमि देने का आश्वासन दे दिया। जिसके बाद मैंने बलि को अपने चतुर्भुज रूप का दर्शन दिया और भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ तथा सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक को रखा।

यह सब होने के बाद मैंने राजा बलि से कहा कि हे राजन! एक पग पृथ्वी से, दूसरा स्वर्गलोक से पूर्ण हो गया। अब तीसरा पग कहां रखूं? इसके बाद पूरे ब्रह्मांड में कोई भी जगह शेष नहीं होने के कारण बलि ने अंत में अपना शीश झुका लिया और मैंने अपना तीसरा पग उसके मस्तक पर रख दिया। जिसके बाद वह पाताल की ओर चला गया।

मेरे प्रति उसकी इस भक्ति और समर्पण को देख मैने बलि को यह आश्वाशन दिया मैं सदैव तुम्हारे आस-पास ही रहूंगा। जिसके बाद बलि के कहने के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल एकादशी के दिन उसके आश्रम पर मेरी प्रतिमा की स्थापना की गई।

इसी प्रकार हे राजन! इस एकादशी के दिन योग निद्रा में गए भगवान नारायण शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए इस एकादशी के दिन सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु का पूजन करना श्रेष्ट्र माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन चांदी, तांबा दही, चावल आदि का दान करना चाहिए। रात में जागरण अवश्य करना चाहिए।

जो भी व्यक्ति विधि विधान से इस एकादशी का व्रत रखते है उन्हें सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद परमधाम की प्राप्ति होती है। जो भी लोग इस कथा का श्रवण करते है या पढ़ते हैं तो उन्हें हजार अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है।

जल झुलनी एकादशी मान्यता

कहते है भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने कपड़े वगैरहा धोकर शुद्धि करके जलवा पूजा था। इसी दिन माता ने पहली बार कान्हा को घर से बाहर निकाला था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार चार मास के शयन काल में शेषनाग की शैया पर लेटे भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते हैं इसलिए इसे परिवर्तनि एकादशी कहते हैं।

वामन अवतार और राजा बलि की कथा

त्रेतायुग में बलि नामक एक दानव था । दानव होते हुए भी वह भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। साथ ही वह यज्ञ और तप आदि भी किया करता था। भक्ति के प्रभाव से वह इतना बलवान हो गया कि वह स्वर्ग में इन्द्र के स्थान पर राज्य करने की कोशिश करने लगा। इससे देवताओं के लिए समस्या उत्पन्न हो गई।

समस्या के समाधान के लिए उन्होंने भगवान श्रीविष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान श्रीविष्णु ने वामन का रूप धारण किया और पृथ्वी लोक पर राजा बलि के सामने पहुंचे। उनसे याचना करके कहा –

हे राजन ! तुम मुझे तीन पग भूमि दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने दानी होने के कारण वामन का आग्रह स्वीकार कर लिया। भगवान ने अपना आकार बढ़ा लिया कि पृथ्वी भी छोटी पड़ गई।

वामन देव ने अपने प्रथम पग में भूमि और दूसरे पग में नभ को नाप कर उन पर अधिकार का लिया।

वामन देव ने राजा बलि से पूछा कि मैं यह तीसरा पग कहां रखूं। ऐसे में राजा ने तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर आगे बढ़ा दिया, वामन देव ने अपना पांव उस पर रख दिया। इस तरह स्वर्ग एवं पृथ्वी लोक एक साथ-साथ राजा बलि पर भी वामन देव का अधिकर हो गया। भक्त दानव पाताल लोक चला गया और देवों को उसकी शक्ति से छुटकारा मिला।

पाताल लोक जाकर भी अपने कठोर तप से राजा बलि ने फिर से विष्णुजी को प्रसन्न किया और वरदान के रूप में वामन देव को पाताल लोक में पहरेदार बनाने की विनती की। यह समय भाद्रपद माह का ही था और हिन्दू पंचांग के अनुसार यह समय शुक्ल पक्ष के भीतर आता है। तभी से हिन्दू धर्म में इस दिन वामन एकादशी मनाई जाती है।