Vishwakarma Puja – विश्वकर्मा पूजा के बारें में जानें

Vishwakarma-Puja

Vishwakarma Puja

Vishwakarma Puja- भगवान विश्वकर्मा को पृथ्वी का प्रथम इंजीनियर या वास्तुकार माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा को “देवताओं का शिल्पकार” माना गया है। हर साल ये जयंती कन्या संक्रांति के दिन के मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा से व्यक्ति के व्यापार में वृद्धि होती है।

इस दिन हिंदू धर्म के लोग अपने कार्य स्थल पर भगवान विश्वकर्मा की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन कारखानों, उद्योगों, फेक्ट्रियों, हर प्रकार की मशीनों और औजारों की पूजा की जाती है। इनकी पूजा सभी कलाकार, बुनकर, शिल्पकार, औद्योगिक घरानों और फैक्ट्री के मालिकों द्वारा की जाती है।

Vishwakarma Puja- इन चीजों का किया था निर्माण

पुराणों के अनुसार, प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी, प्राय: सभी को विश्वकर्मा जी ने बनाया है। सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ हस्तिनापुर’ और इन्द्रप्रस्थ आदि सभी विश्वकर्मा जी द्वारा ही रचित हैं।

‘सुदामापुरी’ की रचना के विषय में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा जी ही थे। जगन्नाथ पूरी में “जगन्नाथ” मंदिर का निर्माण, पुष्पक विमान का निर्माण, सभी देवताओं के महलों का निर्माण, कर्ण का कुंडल, विष्णु का सुदर्शन चक्र, भगवान शंकर का त्रिशूल आदि का भी निर्माण विश्वकर्मा के द्वारा ही किया हुआ माना जाता है।

Vishwakarma Puja- विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाया जाता है

भगवान विश्वकर्मा जी को प्रथम इंजीनियर के नाम से जाना जाता है और इन्हें दुनिया का निर्माता भी कहते हैं।

उन्होंने पवित्र शहर द्वारका का निर्माण किया जहां कृष्ण भगवान ने शासन किया, पांडवों की माया सभा, और देवताओं के लिए कई शानदार हथियारों के निर्माता थे।

ऋग्वेद में उल्लेख के अनुसार उन्हें दिव्य बढ़ई भी कहा जाता है, और उन्हें यांत्रिक विज्ञान और वास्तुकला (architecture) का विधाता माना गया है।

इस दुनिया में हर काम औजार की सहायता से ही होता है अत: सभी एक जगह इकठ्ठा होकर भगवान विश्वकर्मा जी की प्रतिमा के सामने बैठ कर पूर्ण विधि-विधान से अपने औजारों आदि की पूजा उनके जन्म दिवस के दिन करते हैं।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व

कहा जाता है कि प्राचीन काल में ब्रह्मा जी के पुत्र विश्वकर्मा (brahma ji son vishwakarma) ने ही राजधानियों का निमार्ण किया था। उन्होंने ही भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र और भगवान शिव के लिए त्रिशूल बनाया था। यहां तक कि सतयुग का स्वर्गलोक, त्रेता की लंका और द्वापर युग की द्वारका की रचना भी विश्वकर्मा भगवान द्वारा ही की गई थी।

भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला वास्तुकार माना जाता है।

ऐसे में हर साल मान्यता है कि घर में रखे हुए लोहे के सामान और मशीनों की पूजा करने से वे जल्दी खराब नहीं होते और मशीनें अच्छी चलती हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान मशीनों पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। भारत के कई हिस्सों में विश्वकर्मा जयंती को बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

विश्वकर्मा पूजा विधि

विश्वकर्मा जयंती हर साल तब मनाई जाती है, जब सूर्यदेव सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन पूजा करने के लिए सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहन लें। फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें।

पूजा में हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, दीप और रक्षासूत्र शामिल करें। पूजा में घर में रखा लोहे का सामान और मशीनों को शामिल करें। पूजा करने वाली चीजों पर हल्दी और चावल लगाएं।

इसके बाद पूजा में रखे कलश को हल्दी लगा कर रक्षासूत्र बांधे। इसके बाद पूजा शुरु करें और मंत्रों का उच्चारण करते रहें। पूजा खत्म होने के बाद लोगों में प्रसाद बांट दें।

कथाएं

भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। वराह पुराण के अनुसार ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को धरती पर उत्पन्न किया। वहीं विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की। भगवान विश्वकर्मा के जन्म को देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन से भी जोड़ा जाता है।

इस तरह भगवान विश्वकर्मा के जन्म को लेकर शास्त्रों में जो कथाएं मिलती हैं, उससे ज्ञात होता है कि विश्वकर्मा एक नहीं कई हुए हैं और समय-समय पर अपने कार्यों और ज्ञान से वो सृष्टि के विकास में सहायक हुए हैं। शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के इस वर्णन से यह संकेत मिलता है कि विश्वकर्मा एक प्रकार का पद और उपाधि है, जो शिल्पशास्त्र का श्रेष्ठ ज्ञान रखने वाले को कहा जाता था।

सबसे पहले हुए विराट विश्वकर्मा, उसके बाद धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी, तब सुधान्वा विश्वकर्मा हुए। फिर शुक्राचार्य के पौत्र भृगुवंशी विश्वकर्मा हुए। मान्यता है कि देवताओं की विनती पर विश्वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों से स्वर्गाधिपति इंद्र के लिए एक शक्तिशाली वज्र बनाया था।

प्राचीन काल में जितने भी सुप्रसिद्ध नगर और राजधानियां थीं, उनका सृजन भी विश्वकर्मा ने ही किया था, जैसे सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलियुग के हस्तिनापुर। महादेव का त्रिशूल, श्रीहरि का सुदर्शन चक्र, हनुमान जी की गदा, यमराज का कालदंड, कर्ण के कुंडल और कुबेर के पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।

वो शिल्पकला के इतने बड़े मर्मज्ञ थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ बनाने की सामथ्र्य रखते थे।