Kartik Maas Ki Katha – कार्तिक मास की कथा

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Kartik Maas Ki Katha

Kartik Maas Ki Katha- एक नगर में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। वे रोजाना सात कोस दूर गंगा,यमुना स्नान करने जाते थे। इतनी दूर आने-जाने से ब्राह्मणी थक जाती थी तब ब्राह्मणी कहती थी कि हमारे एक बेटा होता तो कितना अच्छा रहता। बेटे के बहू आती तो हमे घर वापस जाने पर खाना बना हुआ मिलता और बहू घर का काम भी कर देती।

ब्राह्मणी की बात सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि तूने बात तो सही कही है, चल मैं तेरे लिए बहू ला ही देता हूं। ब्राह्मण ने कहा कि एक पोटली में आटा डाल कर कुछ मोहरे रख दे। ब्राह्मण के कहे अनुसार ब्राह्मणी ने पोटली बांध कर दे दी पोटली लेकर ब्राह्मण चला गया।

ब्राह्मण अभी कुछ दूर गया ही था कि उसे यमुना के किनारे बहुत ही सुंदर लड़कियां दिखाई दी। वे रेत में घर बना कर खेल रही थी। उनमें से एक लड़की ने कहा कि मैं अपना घर नहीं बिगाडूंगी मुझे तो रहने के लिए ये घर चाहिए। लड़की की बात सुनकर ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा की बहू बनाने के लिए यही लड़की सही रहेगी।

Kartik Maas Ki Katha

जब वह लड़की जाने लगी तो ब्राह्मण भी उसके पीछे पीछे उसके घर तक चला गया। वहां जाकर ब्राह्मण ने कहा बेटी, अभी कार्तिक मास चल रहा है इसलिए मैं किसी के घर खाना नहीं खाता। मैं आटा लेकर आया हूं तुम अपनी मां से पूछो कि क्या वह मेरे लिए आटा छानकर चार रोटी बना देगी? यदि वह मेरा आटा छान कर रोटी बनाएगी तो ही मैं रोटी खाऊंगा।

लड़की ने जाकर अपनी मां से सारी बात कह दी। मां ने कहा – ठीक है, जाकर बाबा से कह दे कि वह अपना आटा दे दे मैं रोटी बना दूंगी। जब वह आटा छानने लगी तो आटे में से मोहरे निकली। वह सोचने लगी कि जिस के आटे में इतनी मोहरे है उसके घर में कितनी मोहरे होंगी। जब ब्राह्मण खाना खाने बैठा तो लड़की की मां ने कहा – बाबा आप अपने लड़के की सगाई करने जा रहे हो।

तब ब्राह्मण ने कहा कि मेरा बेटा तो काशी में पढ़ने गया हुआ है लेकिन यदि तुम कहो तो खांड कटोरे से विवाह करके तेरी बेटी को अपने साथ ले जाऊं। लड़की की मां ने कहा – ठीक है बाबा और खांड कटोरे से शादी करके ब्राह्मण के साथ भेज दिया। ब्राह्मण ने घर आकर कहा रामू की मां दरवाजा खोलकर देख मैं तेरे लिए बहू लेकर आया हूं।

ब्राह्मणी बोली दुनिया ताने मारती थी अब आप भी मारने लगे। हमारे तो सात जन्म तक कोई बेटा बेटी नहीं है तो बहू कहां से आएगी। ब्राह्मण ने कहा कि तू दरवाजा खोल कर तो देख। जब ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला तो सामने बहू को खड़ी देखा। उसने बहु का स्वागत किया और आदर सत्कार से अंदर ले गई।

अब ब्राह्मण और ब्राह्मण स्नान करने जाते तो बहू घर का सारा काम करके और खाना बना कर रखती। वह उनके कपड़े धोती और रात को पैर भी दबाती। इस तरह काफी समय बीत गया। ब्राह्मणी ने अपनी बहू से कहा कि बहू कभी भी चूल्हे की आग मत बुझने देना और मटके का पानी खत्म मत होने देना। 1 दिन चूल्हे की आग बुझ गई।

Kartik Maas Ki Katha

तब बहु भागी-भागी अपनी पड़ोसन के पास गई और कहां कि मेरे चूल्हे की आग बुझ गई है मुझे थोड़ी आग चाहिए। मेरे साथ ससुर सुबह चार बजे से गए हुए हैं वह थके, हारे आएंगे इसलिए मुझे उनके लिए खाना बनाना है। तब पड़ोसन ने कहा कि तू तो बावली है, तुझे यह दोनों मिलकर पागल बना रहे हैं, इनके कोई बेटा नहीं है।बहू ने कहा – नहीं, ऐसा मत बोलो, इनका बेटा तो बनारस काशी में पढ़ने गया हुआ है।

तब पड़ोसन ने कहा कि यह तुझे झूठ बोल कर लाऐ है इनके कोई बेटा नहीं है। अब बहू पड़ोसन की बातों में आ गई और कहने लगी कि अब आप ही बताओ मैं क्या करूं। पड़ोसन ने कहा कि करना क्या है, जब तुम्हारे सास ससुर आए तो जली-फुँकी रोटियां बना कर देना और बिना नमक की दाल बना कर देना। खीर की कड़छी दाल में और दाल की कड़छी खीर में डाल देना।

वह पड़ोसन की सारी सीख लेकर घर आ गई जब उसके साथ ससुर घर आए तो उसने ना तो उनका आदर सत्कार किया ना ही उनके कपड़े धोए। जब उसने सास-ससुर को खाना दिया तो सास बोली बहू आज यह रोटियां जली-फुँकी क्यों है और दाल भी अलुनी है। तब बहू ने पलट कर जवाब दिया कि एक दिन ऐसा खाना खा लोगे तो कुछ बिगड़ नहीं जाएगा तुम्हारा।

Kartik Maas Ki Katha

सास ससुर को खरी-खोटी सुनाकर वह फिर से पड़ोसन के पास गई और बोला कि अब आगे क्या करना है। पड़ोसन ने कहा कि अब तुम सातों कोठों की चाबी मांग लेना। अगले दिन जब भी स्नान करने के लिए जाने लगे तो बहू अड़ गई कि मुझे तो सातों कोठों की चाबी चाहिए। तब ससुर ने कहा कि इसे चाबी दे दो आज नहीं तो कल इसे ही देनी है। तब सास ने बहू को चाबी दे दी।

सास ससुर के जाने के बाद जब बहू ने दरवाजे खोले तो देखा कि किसी में अन्न भरा है किसी में धन भरा है और किसी कोठे मे बर्तन पडे है। जब उसने सबसे ऊपर का सातवा कोठा खोला तो देखा कि शिव जी, पार्वती माता, गणेश जी, लक्ष्मी माता जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसा जी का बिड़वा, गंगा यमुना, व 33 कोटी देवी देवता विराजमान है। वहीं पर एक लड़का चंदन की चौकी पर बैठा माला जप रहा है।

यह सब देख कर उसने लड़के से पूछा कि तू कौन है। तब लड़का बोला कि मैं तेरा पति हूं अभी दरवाजा बंद कर दे जब मेरे माता-पिता आएंगे तब दरवाजा खोलना। यह सब देखकर बहू बहुत खुश हुई और सोलह श्रंगार कर सुंदर वस्त्र पहन कर अपने सास-ससुर का इंतजार करने लगी। उसने अपने सास-ससुर के लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाए।

जब उसके साथ ससुर घर पर आए तो उसने उनका आदर सत्कार किया और प्रेम पूर्वक खाना खिलाया और पैर पैर दबाने लगी पैर दबाते दबाते बहू ने कहा कि मां आप इतनी दूर गंगा यमुना स्नान करने के लिए जाती हो तो आप थक जाती हो इसलिए आप घर पर ही स्नान क्यों नहीं करती हो। यह सुन सास कहने लगी कि बेटी गंगा यमुना घर पर तो नहीं बहती है। तब उसने कहा हां मां जी बहती है चलो मैं आपको दिखाती हूं।

जब बहू ने सातवां कोठा खोल कर दिखाया तो उसमें शिव जी, पार्वती जी, गणेश जी, लक्ष्मी जी, पीपल पथवारी, कार्तिक के ठाकुर, राई दामोदर, तुलसा जी का बिड़वा, गंगा यमुना बह रही है और, 33 कोटी देवी देवता विराजमान है। वही चौकी पर बैठा एक लड़का माला जप रहा है। मां ने कहा कि बेटा तू कौन है। लड़का बोला – मां मैं तेरा बेटा हूं। तब ब्राह्मणी ने पूछा कि तू कहां से आया है।

लड़के ने जवाब दिया कि मुझे कार्तिक देवता ने भेजा है। बुढ़िया ने कहा कि बेटा यह दुनिया कैसे मानेगी कि तू मेरा बेटा है। बुढ़िया ने कुछ विद्वान पंडितों से मदद मांगी। पंडितों ने कहा कि इस पार बहू-बेटा खड़ा हो जाए और उस पार बुढ़िया खड़ी हो जाए।बुढ़िया ने चमडे की अंगिया पहनी हो और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी मूछ भीगे और पवन पानी से गठजोड़ा बंधे तब माने कि यह बुढ़िया का ही बेटा है।

उसने ऐसा ही किया चमड़े की अंगिया फट गई और छाती में से दूध की धार निकल कर बेटे की दाढ़ी मूछ भीग गई, पवन पानी से बहू बेटे का गठजोड़ बंध गया। यह सब देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी की खुशी का ठिकाना ना रहा।

हे कार्तिक के ठाकुर, जैसे ब्राह्मण ब्राह्मणी को बहू-बेटा दिया वैसे सबको देना। कार्तिक मास की कथा कहने, सुनने और हुंकारा भरने वाले सब पर कृपा करना।

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