End of Ego
End of Ego- प्राचीनकाल में समुद्र के किनारे नगर में एक धनवान सेठ हवेली में रहता था। हवेली के पास पेड़ पर एक कौआ रहता था। मोटा-तजा हो गया। इसे इतना सभिमान हो गया कि वह अन्य पक्षियों को तुच्छ और स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगा।
एक दिन समुद्र के किनारे हंसो का झुण्ड आया, जिनके पंख धवल और चोंच सुंदर थे।
दूसरे पक्षी अभिमानी कौए के पास गये और उनकी सुंदरता के बारे में उसे बताया। यह सुनकर कौए को क्रोध आ गया तथा वह अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए समुद्र की ओर गया।
वहाँ जाकर वह हंसो से बोला कि में तुमसे अधिक हष्ट-पुष्ट और सुन्दर हूँ तथा उडने की एक सौ आठ कलाए जानता हूँ। क्या तुम उड़ान में मुझसे मुकाबला करोगे? हंस उसकी मूर्खता पर मन ही मन मुस्कराये।
End of Ego
उनमे से एक हंस बोला कि नहीं भाई, में तो सिर्फ एक कला ही जनता हूँ, पर तुम कहते हो तो तुम्हारे साथ होड़ लगाता हूँ।
हंस और कौआ उड़ने लगे। कौआ तीव्र गति से उड़ने के साथ-साथ कलाबाजियां खता हुआ उड़ने लगा। हंस शांत और समान गति से ुस्ते हुए थोड़ी दूर जाकर समुद्र की ओर उड़ने लगा।
कौआ भी समुद्र पर उड़ने लगा, परन्तु कलाबाजियां करने से थक गया और उसे चककर आने लगे। कौआ थककर चूर हो गया और नीचे की तरफ आने लगा। कौए की साँस फूलने लगी और वह पानी से टकराने लगा।
कौआ घबरा गया। उसकी शक्ति समाप्त हो गयी और समुद्र की लहरों पर गिर पड़ा।
वह डूबने लगा तो हंस से बोला कि भैया मुझे बचा लो। अपनी दुसरो के द्धारा झूठी प्रसंशा सुनकर मुझे अभिमान हो गया था। मुझे क्षमा कर दो।
उसकी दशा देखकर हंस को दया आ गई और कौए को अपनी पीठ पर बिठाकर किनारे पर ले आया। सभी पक्षियों के सामने कौआ बहुत शर्मिन्दा हुआ।
शिक्षा :
हमे कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए तथा विनम्र बनना चाहिए।