Sharad Purnima
Sharad Purnima-सालभर की पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। आश्विन मास की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा होती है। इस साल शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर को है। इस दिन की खास बात यह है कि चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इसे अमृत काल भी कहा जाता है। इस व्रत को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि इस दिन महालक्ष्मी का जन्म हुआ था। कहते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं।
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरूड़ पर बैठकर पृथ्वी लोक में भ्रमण के लिए आती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर सभी को वरदान और कृपा बरसाती हैं। जो सोता रहता है, वहां माता लक्ष्मी दरवाजे से ही लौट जाती हैं। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी कर्ज से भी मुक्ति दिलाती हैं।
यही कारण है कि इसे कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूरी प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती है। कहते हैं कि इस रात को देखने के लिए समस्त देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी आते हैं।
Sharad Purnima
शरद पूर्णिमा, पूर्णिमा के दिन आने वाले प्रसिद्ध हिंदू त्यौहारों में से एक है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सभी सोलह कलाओं के साथ पृथ्वी के नजदीक होता है। भगवान विष्णु के अवतारों मे से केवल भगवान श्री कृष्ण ही हैं जिनमें सोलह कलाओं का समावेश है, जबकि भगवान राम का जन्म केवल बारह कलाओं के साथ हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि, शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने दिव्य प्रेम और नृत्य के संगम महा-रास को स्वयं वृंदावन में रचा था। इसलिए बृज क्षेत्र में, शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है
ज्योतिष शात्र की मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों में उपचार करने की शक्ति विद्यमान होती हैं, जिसे अमृत वर्षा की तरह भी देखा जा सकता है। परंपरागत रूप से शरद पूर्णिमा के दिन गाय के दूध की खीर या अन्य मीठे व्यंजन सारी रात चंद्रमा की खुली चांदनी के नीचे लटका कर रखते है, जिससे कि उन व्यंजनों मे भी अमरत्व की शक्ति प्रवेश कर जाए। गुजरात राज्य में शरद पूर्णिमा को शरद पूनम भी कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि, इसी रात के बाद से मौसम बदलने लगता है और सर्दियां शुरू हो जाती हैं। तथा मंदिरों में पूजा-अर्चना एवं खुलने-बंद होने का समय परिवर्तित होजाता है।
Sharad Purnima- कब होती है शरद पूर्णिमा
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा या कौमुदी व्रत भी कहा जाता है।
Sharad Purnima- शरद पूर्णिमा का महत्व
साल भर में आने वाली सभी पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा का विशेष रूप से इंतजार रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर पूरी रात चांद की रोशनी में आसमान के नीचे रखा जाता है फिर अगले दिन सुबह इसे प्रसाद के तौर पर परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं।
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद ग्रहण करता है उसके शरीर से कई रोग खत्म हो जाते हैं। वहीं ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा शुभ फल नहीं देते हैं उन्हें खीर का सेवन जरूर करना चाहिए। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा देवी लक्ष्मी का आगमन होता है इस कारण से देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है।
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शरद पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथाओं की मानें तो एक नगर में एक साहुकार रहता था। जिसकी दो बेटियां थी। साहुकार की दोनों बेटियों का धर्म-कर्म में ध्यान रहता है और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी हमेशा अपना व्रत पूरा करती थी और छोटी बेटी व्रत अधूरा ही करती थी। एक समय बाद दोनों की शादी हो गई।
बड़ी बेटी ने स्वस्थ संतान को जन्म दिया। लेकिन छोटी बेटी की संताने पैदा होने के उपरांत मर जाती थी। इस कारण से दुखी साहुकार की छोटी बेटी पंडित के पास पहुंची। पंडित ने कहा कि आपने पूर्णिमा का व्रत हमेशा अधूरा किया। इसलिए आपकी संताने जन्म लेते ही मर जाती हैं। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से आपकी संतान जीवित रह सकती हैं।
उसने ऐसा ही किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दीया। बड़ी बहन जब वहां बैठी हुई थी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया।
बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। यह देखकर बड़ी बहन हैरान हो गई और कहा कि तुमने अपने बेटे को यहाँ क्यों सुला दिया। अगर वह मर जाता है तो मुझ पर कलंक लग जाता। तुम क्या चाहती थी। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तुम्हारे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तुम्हारा पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने अपनी कहानी बताई तथा पूर्णिमा का विधिवत पूरा व्रत करने की विधि बताई।