Guru purnima
Guru purnima गुरु का हमारे और आपके जीवन में महत्व है। गुरु हमें शिक्षा देते हैं। गुरु को हम आचार्य , अध्यापक और टीचर के नाम से जानते हैं। अध्यापक अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं। गुरु का स्थान तो भगवान से’ भी बड़ा होता है।
Guru purnima
गुरु की महानता देखते हुए ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। ‘गु’ शब्द का अर्थ है ‘अंधकार’ और ‘रू’ का अर्थ है तेज; अज्ञान का नाथ करने वाला तेजरूप ब्रहृा, गुरू ही है, इसमें संशय नहीं है।
इस दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। यह पूर्णिमा ‘व्यास पूर्णिमा’ के नाम से भी जानी जाती है। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं की पूजा करनी चाहिए।
गुरु के ज्ञान और दिखाए गए मार्ग पर चलकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है। यह माना जाता है कि वो वेद व्यास ही थे जिन्होंने सनातन धर्म के चारों वेदों की व्याख्या की थी।
गुरु के पद को भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया गया है, इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का विशेष पूजन करने का विधान है।
Guru purnima
अपने संसार से तुम्हारा परिचय कराया, उसने तुम्हें भले-बुरे का आभास कराया,
अथाह संसार में तुम्हें अस्तित्व दिलाया, दोष निकालकर दृढ़ व्यक्तित्व बनाया।
जिसने ज्ञान-रूपी अंजन की सलाई से अज्ञानरूपी अंधेरे से अंधी हुई।
आंखों को खोल दिया, उन श्री गुरू को नमस्कार है।
पानी के बिना नदी बेकार है, अतिथि के बिना आँगन बेकार है।
प्रेम ना हो तो सगेसम्बन्धी बेकार है, और जीवन में “गुरु” ना हो तो जीवन बेकार है।
ध्यान का आदिकारण गुरू मूर्ति है गुरू का चरण पूजा का मुख्य स्थान है।
गुरू का वाक्य सब मन्त्रों का मूल है और गुरू की कृपा मुक्ति कारण है।
गुरु की पूजा और आशीर्वाद से जो मार्गदर्शन मिलता है
वह गलत राह भटकने से रोकता है। साथ ही मस्तिष्क को भी खोलता है।
मार्ग को न जानने वाला अवश्य ही मार्ग को जानन वाले से पूछता हैं।
गुरू के अनुसासन का यही कल्याणदायक फल है कि वह अनुशासित
ज्ञानी पुरूष भी ज्ञान को प्रकाशित करने वाला वाणियों को प्राप्त करता है।