Meera Bai Jayanti 2022
Meera Bai Jayanti – आज के समय में मीराबाई के बारे में जानते है, वे (1498-1547 लगभग) एक महान हिंदू कवि होने के साथ कृष्ण भगवान की बहुत बड़ी भक्त थी। जब भी भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों का जिक्र होता है तो उसमें सबसे पहले मीराबाई (Meera Bai Jayanti) का नाम सबसे ऊपर होता है।
अपने पूरे जीवन काल में सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति ही की थी। भगवान कृष्ण की भावुक स्तुति में लिखी गई लगभग 1300 कविताओं की रचना का श्रेय उन्हें दिया जाता है। मीरा एक राजपूत राजकुमारी थीं जिनका जन्म 1498 में कुडकी, राजस्थान में हुआ था। वह खुद को भगवान कृष्ण से विवाहित मानती थी।
मीराबाई का जीवन की जानकारी (Information about Mirabai’s life)
इनके बारे में कोई भी ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं हैं। विद्वानों ने साहित्य और दूसरे स्रोतों से मीराबाई (Meera Bai Jayanti) के जीवन के बारे में बताया है। मीरा का जन्म राजस्थान के मेड़ता में सन 1498 में एक राजपरिवार में हुआ था। उनके पिता रतन सिंह राठोड़ एक छोटे से राजपूत रियासत के शासक थे। वे अपनी माता-पिता की इकलौती संतान थीं और उनके बचपन में उनकी माता का निधन हो गया था।
उन्हें संगीत, धर्म, राजनीति और प्राशासन जैसे विषयों की शिक्षा दी गयी। दादा के देख-रेख में हुआ जो भगवान् विष्णु के गंभीर उपासक थे इस प्रकार मीरा बचपन से ही साधु-संतों और धार्मिक लोगों के सम्पर्क में रहीं।
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बचपन से ही श्रीकृष्ण भक्त-
मीराबाई के बालमन से ही कृष्ण की छवि बसी थी इसलिए यौवन से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। बाल्यकाल में एक दिन उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं, वे कृष्ण को ही अपना पति समझने लगीं।
मीराबाई जयंती कब मनाई जाती है?
आश्विन की पूर्णिमा के दिन मीरा बाई का जन्म माना जाता हैं, यह प्रचंड कृष्ण भक्त थी, जिनकी स्वयम कृष्ण रक्षा करते थे. यह पर्व शरद पूर्णिमा को मनाया जाता हैं. इस दिन संसार श्री कृष्ण की लीलाओं का गुणगान करता हैं।
मीराबाई का विवाह (Meerabai Marriage)
मीरा का विवाह राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोज राज के साथ सन 1516 में संपन्न हुआ। उनके पति के मृत्यु के कुछ वर्षों के अन्दर ही उनके पिता और श्वसुर भी मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के साथ युद्ध में मारे गए। अनुसार पति की मृत्यु के बाद मीरा को उनके पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, और साधु-संतों की संगति में कीर्तन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगीं।
मीरा बाई राम की भक्ति-
मीरा बाई ने तुलसीदास को गुरु बनाकर रामभक्ति भी की। इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। माना जाता है तुलसी दास के कहने पर मीरा ने कृष्ण के साथ ही रामभक्ति के भजन लिखे। मीराबाई (Meera Bai Jayanti) की ऐसी कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छी नहीं लगी। जिस कारण उनके परिजनों ने मीरा को कई बार विष देकर मारने की भी कोशिश की।
मीरा बाई का श्रीकृष्ण में समा जाना-
मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं। वर्ष 1547 में द्वारका में कृष्ण भक्ति करते-करते श्री कृष्ण की मूर्ति में ही समां गईं थी।
मीराबाई की रचनाएँ-
- गीत गोविंद
- राग सोरठ
- मीरा की मल्हार
- नरसी का मायरा
- मीरा पदावली