Nag Panchami 2022
Nag Panchami 2022 – श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी कहते हैं। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। गरुड़ पुराण में ऐसा सुझाव दिया गया है कि नागपंचमी के दिन घर के दोनों बगल में नाग की मूर्ति खीचकर पूजन किया जाय।
पंचमी नागों की तिथि हैं, ज्योतिषी के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग है। अर्थात शेष आदि सर्पराजों का पूजन पंचमी को होना चाहिए। सुंगधित पुष्प तथा दूध सर्पो को अति प्रिय है। गाँवो में इस ‘नागचेया’ भी कहते है।
इस दिन ग्रामीण लडकिया किसी जलाशय में गुड़ियों का विसर्जन करती है ग्रामीण बच्चे तैरती हुई उन निर्जीव गुड़ियों को डंडे से खूब पीटते है। तत्पश्चात बहन उन्हें रुपया की भेंट तथा आशीर्वाद देती हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व बिहार बंगाल ओडिशा और राजस्थान में मनाया जाएगा। जबकि शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की नागपंचमी उत्तर प्रदेश सहित बाकी राज्यों में मनाई जाती है। कृष्ण पक्ष के अनुसार, नागपंचमी का पर्व 18 जुलाई 2022 को जबकि शुक्ल पक्ष के अनुसार, नागपंचमी 2 अगस्त को है।
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नाग पंचमी पूजा महत्व
मान्यताओं के अनुसार, नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से जीवन के संकटों का नाश होता है। मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ये भी कहा जाता है कि यदि इस दिन किसी व्यक्ति को नागों के दर्शन होते हैं तो उसे बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन सांपों को दूध से स्नान और दूध पिलाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
नाग पंचमी पूजन विधि
नाग पंचमी वाले दिन अनन्त, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट, शंख, कालिया और पिंगल नामक देव नागों की पूजा की जाती है। ऐसे में इस दिन घर के दरवाजे पर सांप की आठ आकृति बनाएं।
फिर हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नागदेवता की पूजा करें। मिष्ठान का भोग लगाकर नाग देवता की कथा अवश्य पढ़ें। पूजा करने के बाद कच्चा दूध में घी, चीनी मिलाकर उसे लकड़ी पर रखें गए सांप को अर्पित करें।
Nag Panchami 2022-नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त
कृष्ण पक्ष पंचमी
सोमवार, 18 जुलाई 2022
पंचमी तिथि प्रारंभ: 17 जुलाई 2022 सुबह 10:49 बजे
पंचमी तिथि समाप्त : 18 जुलाई 2022 सुबह 8:55 बजे
शुक्ल पक्ष पंचमी
पंचमी तिथि प्रारम्भ: 2 अगस्त, 2022 को सुबह 05 बजकर 14 मिनट से
पंचमी तिथि समापन: 3 अगस्त, 2022 को सुबह 05 बजकर 42 मिनट पर
नाग पंचमी से जुडी कुछ कथाएं व मान्यताएँ
हिन्दू पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता यह है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी से दैत्य उत्पन्न हुए, परन्तु उनकी जो तीसरी पत्नी कद्रू थी, जिनका ताल्लुक नाग वंश से था, उन्होंने नागों को उत्पन्न किया।
पुराणों के मतानुसार सर्पों के दो प्रकार बताए गए हैं — दिव्य और भौम । दिव्य सर्प वासुकि और तक्षक आदि हैं। इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और प्रज्ज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी बताया गया है।
वे अगर कुपित हो जाएँ तो फुफकार और दृष्टिमात्र से सम्पूर्ण जगत को दग्ध कर सकते हैं। इनके डसने की भी कोई दवा नहीं बताई गई है। परन्तु जो भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्प हैं, जिनकी दाढ़ों में विष होता है तथा जो मनुष्य को काटते हैं उनकी संख्या अस्सी बताई गई है।
अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक — इन आठ नागों को सभी नागों में श्रेष्ठ बताया गया है। इन नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं। अनन्त और कुलिक — ब्राह्मण; वासुकि और शंखपाल — क्षत्रिय; तक्षक और महापदम — वैश्य; व पदम और कर्कोटक को शुद्र बताया गया है।
पौराणिक कथानुसार जन्मजेय जो अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे; उन्होंने सर्पों से बदला लेने व नाग वंश के विनाश हेतु एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी।
नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई।
Nag Panchami 2022-नाग पंचमी की कहानी
एक ब्राह्मण के सात बहुएं थी । सावन मास लगते ही छः बहुएं तो भाई के साथ मायके चली गईं परन्तु अभागनी सातवी के कोई भाई नहीं था उसको कौन बुलाने आता ? बेचारी ने दुःखी होकर पृथ्वी को धारण करने वाले शेषनाग को भाई के रूप में याद किया।
उसकी करुणाभरी , दीन वाणी को सुनकर शेष जी बूढ़े ब्राह्मण के रूप में आये , और उसे लेकर चले गये थोड़ी दूर चलने पर उन्होंने अपना असली रूप धारण कर लिया। तब फैन पर बैठ कर नाग लोक ले गये। वहां वह निश्चिंत होकर रहने लगी।
पाताल लोक में जब वह निवास कर रही थीं, उसी समय शेष जी की कुल परम्परा में नागों के बहुत से बच्चों ने जन्म लिया। उस नाग के बच्चो को सर्वत्र विचरण करते देख शेषनाग रानी ने उस वधू को पीतल का एक दीपक दिया तथा बताया कि इसके प्रकाश से तुम अंधेरे में भी सब कुछ देख सकोगी एक दिन अकस्मात उसके हाथ से दीपक नीचे टहलते हुए नाग के बच्चों पर गिर गया।
परिणाम स्वरूप सबकी थोड़ी पूँछ कट गई। यह घटना घटित होते ही कुछ समय बाद वह ससुराल भेज दी गई। जब अगला सावन आया तो वह वधू मंगल कामना करने लगी। इधर क्रोधित नाग बालक माताओं से अपनी पूछ काटने का आदिकारण इस वधू को मानकर बदला चुकाने के लिए आए थे, लेकिन अपनी ही पूजा में श्रद्धावनत उसे देखकर वे सब प्रसन्न हुए और उनका क्रोध समाप्त हो गया।
बहन स्वरूप उस वधू के हाथ से प्रसाद रूप में उन लोगों ने दूध तथा चावल भी खाया। नागों ने उसे सर्पकुल से निर्भय होने का वरदान तथा उपहार में मणियों, की माला दी। उन्होंने यह भी बताया कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हमें भाई रूप में जो पूजेगा उसकी हम रक्षा करते रहेंगे।