Bach Baras Ka Vrat
Bach Baras Ka Vrat-भादवा बड़ी बारस को बछबारस होता है। इस दिन एक पाटे पर मिटी से बछबारस बनाते है। इस पाटे के ऊपर जल ,भेस का दही ,भीगें हुए मोठ-बाजरा, बाजरे के आटा मैं घी-चीनी पानी से मिला कर, रोली चावल दूब, ठंड़ी रोटी और दक्षिणा चढ़ाओ। फिर कहानी सुनो। मोठ, बाजरा और पैसा बाहर निकालकर ,सासुजी का आशीर्वाद लेकर दे। आपकी बहन-बेटियों को भी बाहर ना भेजे। इस दिन ठंडी रोटी खावे। गाय का दूध -दही और गेंहू-चावल नही खावे।बछबारस कि पूजा करने के बाद, आपका कुँवारे लकड़े कि नाभि पर तलाई बनाकर दही, मोठ, बाजरा, दुब और एक रुपए रख कर फ़ूडकड़ो कर।
बछबारस बेटा होने के बाद ही करे।
Bach Baras Ka Vrat- बछबारस का उजमन
लड़का होवे उसी साल बछबारस का उजमन करे और तो तब पूजा हर साल उसी तरह ही कर लेवे, सिर्फ एक थाली में भीगें हुए सवा किलो मोठ बाजरा की तेरह कुड़ी करे। दो-दो मुठिया मोई की(बाजरा के आटे में घी, चीनी, पानी से ओसन कर)और दो-दो कापी खीरा की तेरह कुड़ी पर रखें और ऊपर एक साड़ी और रुपये रख कर ,सासुजी का आशीर्वाद लेकर देवे। बाद में गीत गाते जोड़ा पूजने जाये। गठ जोड़ा की पूजा सभी सामग्री से करें,फेरी दे और गीत गाते हुए आए।
Bach Baras Ka Vrat- बछबारस की कहानी
एक साहूकार था, जिसके सात बेटे थे। साहूकार ने एक तालाब बनवाया किन्तु 12 वर्षो तक भी वह तालाब नही भरा । साहूकार ने पंडितों को बुलाकर पूछा की मेरा तालाब क्यो नही भरा? तब पंडितों ने कहा कि आपके बड़े बेटे की बलि या बड़े पोते की बलि चढ़ाने से तालाब भरेगा। तब साहूकार ने अपनी बड़ी बहू को पीहर भेज दिया और बड़े पोते की बलि चढ़ा दी। तब घन-घोर घटा छाई और तालाब भर गया।
तब साहूकार पूजा करने जाने लगा तो लोग भी तालाब की पूजा करने लगे। जाते समय दासी से बोले गिऊंला धानुला (चने मोठ) बना लियो। साहूकर के गाय और बच्चों का नाम भी गिऊंला धानुला था। तब उस दासी ने गाय के बच्चे को गिऊंला धानुला समझकर पका दिया। तब साहूकार साहूकारनी ने गाजे-बाजे से तालाब पूजा और वहाँ पर साहूकार के बेटे की बहु थी।
बाद में कुछ लोगों ने तालाब पूजा और वहां पर बच्चे कुदने लगे जिस पोते की बलि दी थी वह भी गोबर में लिपटा मिला और बोला मैं भी तालाब में कुदूँगा ससुर बोला कि मैं तो पोते की बलि दे दी थीं, जब तालाब भरा है। लेकिन हमारी तो गाय माता ने लाज रख ली। जिसने हमारा पोता वापस दे दिया और घर वापस आकर दासी से पूछा कि गाय का बछड़ा कहा है? तब दासी बोली कि आप ने गिऊंला धानुला को पकाने के लिये कह गए तो मैने पका लिया। तब साहूकार दासी से बोला – कि पापनी तुने यह क्या पाप हमारे लगाया है? एक पाप तो उतार के आए हैं।
उससे पहले दूसरा लगा दिया । फिर साहूकार सहुकारणी उलटे पड़ गए और सोचा कि अब गाय आएगी तो उसको क्या जवाब देंगे। साहूकार ने उस माँस को हांडी में डालकर जमीन में गाड़ दिया । जब शाम को गाय वापस आई तो वह जहां पर बछड़े का माँस गड़ा हुआ था, उस जगह अपने सींग से खोदने लगी। जब सींग हांडी में लगा तो गाय ने उसे बाहर निकाला उस हांडी में से गाय का बछड़ा निकला । उस दिन से ,इस दिन का नाम बछबारस पड़ गया और गायों तथा उनके बछड़ों की पूजा होने लगी।