Ek Din Dekh Lunga – एक दिन देख लूंगा

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Ek Din Dekh Lunga

Ek Din Dekh Lunga – एक बार की बात है। राजस्थान के रामदेवड़ा में नाहर सिंह साहूकार रहता था। साहूकार की एक आदत थी जो सभी को बुरी लगती थी। वह छोटी-छोटी बातों पर नाराज़ हो जाता था। उसका एक नौकर भी था। जिसका नाम छंगा था। जिसके एक पांव में छह उंगलियां थीं। इसलिए उसको सब छंगा कहकर बुलाते थे।

एक बार साहूकार की पत्नी अपने पीहर गई हुई थी। घर में नाहर सिंह के साथ उसका नौकर दोनों थे। एक दिन साहूकार को चूरमा बाटी खाने की इच्छा हुई। उसने अपने नौकर से चूरमा बाटी भोजन में बनाने के लिए कहा और स्वयं बैठक में गद्दी पर आराम करने लगा।

फिर बाद में उठकर पूजा अगरबत्ती कर ही रहा था कि हाथ में मटकी लिए छंगा आया और बोला, “मालिक घर में घी नहीं है, थोड़े पैसे दे दो जिससे में घी ले आऊं।” फिर वह साहूकार से पैसे लेकर वह बाजार से घी लेने गया।

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घी की दुकान के पास ही एक मदारी का खेल चल रहा था तो वह घी की मटकी दुकानदार को देकर वह मदारी का तमाशा देखने लगा। तमाशा समाप्त होते ही उसने दुकानदार को घी के पैसे दिए और मटकी लेकर आ गया।

साहूकार ने छंगा को आते देखा तो पूछा, “छंगा घी ले आया इधर ला, ज़रा चखकर देखूं तो की तू घी सही लेकर आया है या नहीं” साहूकार ने घी निकालने के लिए उंगली मटकी में डाली, तो बोलै ये क्या है? इसमें तो ऊपर-ऊपर घी है और नीचे दही भरा है।

साहूकार ने अपना माथा पीटा, और बोला “किस बेवकूफ़ से पाला पड़ा है। मेरे पैसे लुटा दिए है।” क्रोध में साहूकार लाल आग की तरह हो गया और उसने पास में पड़ी छड़ी उठाई और ‘तड़ातड़’ छंगा को पीटा। छंगा जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसने मन ही मन साहूकार को कहा, “एक दिन देख लूंगा।(Ek Din Dekh Lunga)”

कुछ दिनों बाद साहूकार ने छंगा से कहा, “आज मुझे दावत में जाना है। मेरी नई मोज़री में तेल लगाकर रख देना। छंगा ने कहा, “जी मालिक ठीक है।” शाम के समय साहूकार ने अंगरखा पहना, पगड़ी लगाकर तैयार हो गया और छंगा को पुकारा, “ओ छंगा, मेरी मोज़री लेकर जल्दी आ मुझे देर हो रही है।”

छंगा तुरंत तेल का कनस्तर लेकर आया। उसे देखकर साहूकार चिल्लाकर कहने लगा “ये क्यों लेकर आया है” बाद में साहूकार को अपने पर नियंत्रण नहीं रहा और उसने छंगा को जमा दिया। छंगा बहुत देर तक रोता रहा और कहने लगा, “एक दिन देख लूंगा।” कुछ दिनो के बाद साहूकार ने छंगा से कहा, “मुझे मेरी पत्नी को लेने ससुराल जाना है, तुझे भी मेरे साथ चलना पड़ेगा। ससुराल जाने से पहले तू घेवर और मिसरी-मावा ले आना। रास्ते में कुछ खाने के लिए रख लेना। हम यहां से सवेरे निकलेंगे।

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अगले दिन नई मोज़री पहने साहूकार सज- धजकर ऊंट पर सवार हो गया। उसके नौकर ने कहा “मालिक आपकी अंगूठियां तो ख़ूब चमक रही हैं।” साहूकार ने कहा “हां शुद्ध सोने की बनी हैं। चमकेगी क्यों नहीं।” साहूकार ऊंट पर सवार था। साथ ही पीछे-पीछे छंगा सारा बोझ लेकर पैदल चल रहा था।

छंगा को साहूकार की बात याद आई, की साहूकार ने कहा था की “चमकने वाली सुनहरी चीज़ें क़ीमती होती हैं।” उसने रास्ते की चमकती रेत खाने व मिठाई के थैलों में डाल ली। साहूकार बहुत थक चूका था इसलिए रास्ते में एक बगीची में कुएं के पास साहूकार रुका। छंगा ने साहूकार के लिए पानी भरा, और फिर ले जाकर साहूकार को दिया। साहूकार चबूतरे पर बैठा था। बाद में छंगा को खाना निकालने को कहा।

छंगा ने प्याज की कचौरी, मिर्च और कुछ मिठाई भी खाने में दे दी। जैसे ही साहूकार ने पहला निवाला मुंह में लिया। उसका मुंह ख़राब हो गया। वह गुस्से से चिल्लाया, “ये क्या मिलाया है खाने में?” साहूकार फिर से छंगा को मरने लगा छंगा कहने लगा, “मालिक, मैंने क्या किया है, उसको अपनी गलती समझ में नहीं आयी।

शाम होते ही वह दोनों सराय पहुँच गए। साहूकार ने आभूषण उतारे। फिर बाद में नहाकर खाना खाया और सोने के लिए चला गया। साहूकार को सोता देख छंगा को बदला लेने की इच्छा हुई। उसने साहूकार के आभूषण व कपड़े पहने लिये। उसमे थोड़ी मिठाई खरीदी और साहूकार से ससुराल पहुँच गया और वहा पर जाकर कहने लगा “मैं तुम्हारे जंवाई का मित्र हूं। तुम्हारा जंवाई पागल हो चूका है। मैं उसे ढूँढ़ने निकला था।

उसने कहा कि साहूकार दो कोस दूर एक सराय में है। उसकी बात सुनकर सभी दौड़कर वहा पहुँच गए। वहां जाकर सभी ने देखा। जंवाईसा ख़ाली जांघिया पहने लेटे है। साहूकार ने अपने ससुरालवालों को देखा तो वह घबरा गया। उसने कमरे में इधर-उधर देखा, उसके आभूषण, कपड़े नहीं मिले। छंगा भी कहीं नहीं दिखा।

ससुराल वालो ने साहूकार को ऊंट गाड़ी में बैठाया और अपनी हवेली ले गए। वहां पर जाकर वह चिल्लाने लगा। ज़बरदस्ती उसके गले में कुर्ता पहनाया। तभी सजा-धजा छंगा आया। छंगा को देखकर गालियां बकने लगा। वह उसके पीछे भागने लगा फिर बाद में भोजन के समय फिर से छंगा ने साहूकार परेशान किया साहूकार क्रोधपूर्वक बोला, “मुझे कुछ नहीं खाना। साहूकार पैदल ही चल पड़ा।

वह दौड़ता हुआ शिव मंदिर के पास पहुंच गया, और वहां पर बैठ गया उसने देखा, की उसकी पत्नी पूजा कर रही है, और वह शिवजी के चरणों में नारियल फोड़ने वाली ही थी, की साहूकार ने अचानक कहा। ये नारियल मेरे सिर पर फोड़ दे। उसने नारियल साहूकार के सिर पे दे मारा। नारियल नहीं फूटा लेकिन साहूकार के सिर से ख़ून बहने लगा।

ससुराल वाले जंवाई को अस्पताल ले गए। छंगा भी यह सब देख रहा था। लेकिन साहूकार के सिर से ख़ून बहता देख वह दुखी हो गया। उसने सारी बात बता दी की मालिक बिलकुल भी पागल नहीं है। ये छोटी सी गलती पर मुझे मारते थे। ये बात सुनकर साहूकार ने मारने के लिए हाथ उठाया, छंगा ने कहा, “एक दिन देख लूंगा।” साहूकार ने न मारने की क़सम खाई। अब उसे पिटाई का डर नहीं था।