क्रोध को समझने के आठ अलग अलग दृष्टिकोण :-
- अगर आप क्रोध के वश में आकर काम करते हैं, तो ये क्रिया नहीं है, ये प्रतिक्रिया है। प्रतिक्रिया की अवस्था, गुलामी की अवस्था है।
- क्रोध और नाराजगी ऐसे ज़हर हैं, जिन्हें आप खुद पीते हैं और दूसरों के मरने की उम्मीद करते हैं। पर जीवन इस तरह काम नहीं करता। अगर आप इन्हें पीयेंगे, तो आप अपना ही नुकसान करेंगें ।
- तनाव, क्रोध, डर या किसी भी तरह के नकारात्मक भाव को महसूस करने का बुनियादी कारण बस एक ही है – आप अपनी अंतरात्मा से अनजान हैं।
- क्रोध खुद को जहर देने की तरह है।
- डर, गुस्सा, नाराजगी, और तनाव सभी जहर हैं, जो आप अपने दिमाग में पैदा करते हैं। अगर आप अपने दिमाग को अपने काबू में ले लेते हैं, तो आप आनन्द का रसायन भी पैदा कर सकते हैं।
- आपका गुस्सा आपकी समस्या है – इसे खुद तक ही सीमित रखें।
- चाहे आप इसे अपराध-बोध कहें, डर, गुस्सा, या घृणा कहें – इसका मूल अर्थ यह है कि आपके विचार और भावनाएं आपके खिलाफ काम कर रही हैं।
- जब आप पर कोई गुस्सा करता है तो आप पसंद नहीं करते, लेकिन आप सोचते हैं कि दूसरों पर गुस्सा करना एक समाधान है। सोचिए ये कितना मूर्खतापूर्ण बात है।
प्राणायाम ,धारणा एवं ध्यान के अभ्यास से क्रोध, डर, नाराजगी, घृणा को कम किया जा सकता है।
आइए, क्रोध को मिटाकर खुद को प्रेम की अनुभूति से भर लें। योग क्रिया द्वारा यह संभव है।